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"दाने को मुहताज / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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| + | थूथन कटा पेट भर गया | ||
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| + | गले पड़ गया फिर वो खूँटा | ||
| + | पगहा-छूँछी नाँद | ||
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| + | आदत मगर जुगाली | ||
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| + | टूटी सड़कें उखड़े रोड़े | ||
| + | जूते फटहे उभरी कीलें | ||
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| + | ख्वाहिशें चलती हैं | ||
| + | नीचे कनई-ऊपर मड़ई | ||
| + | बीच खाट पर बैठे रंगई | ||
| + | जैसे बुझी चिलम | ||
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| + | बिगड़ गया मरजाद | ||
| + | तमन्ना बाकी है | ||
| + | कान पर बीड़ी हो | ||
| + | अमल जब लगती हो | ||
| + | धुँए-घुँए में भीग गयी | ||
| + | ओठों की पपड़ी काली | ||
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17:05, 1 जनवरी 2017 का अवतरण
बात-बात में बावन बीघा
दाने को महताज
बड़ी-बड़ी हरियाली
मुट्ठी खाली- खाली
थूथन कटा पेट भर गया
चरकर सूखी घास
घर को वापस हुए मवेशी
हुई कत्थई शाम
गले पड़ गया फिर वो खूँटा
पगहा-छूँछी नाँद
पेट भरा या खाली
आदत मगर जुगाली
टूटी सड़कें उखड़े रोड़े
जूते फटहे उभरी कीलें
नंगे-नंगे पाँव
ख्वाहिशें चलती हैं
नीचे कनई-ऊपर मड़ई
बीच खाट पर बैठे रंगई
जैसे बुझी चिलम
बिगड़ गया मरजाद
तमन्ना बाकी है
कान पर बीड़ी हो
अमल जब लगती हो
धुँए-घुँए में भीग गयी
ओठों की पपड़ी काली
