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"गरीबा / तिली पांत / पृष्ठ - 18 / नूतन प्रसाद शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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ठेपू कथय -”बिकट मनसे हस, तंय हस मित्र निघरघट जीव
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फसल होय झन होय तभो ले, निष्फलता के अर्थ लगात।
गोल्लर अस अंड़िया के रेंगत, सब ला रखत कांरव मं दाब।”
+
दीन हीन लघु पद देहाती, एमन करत ठोसलग काम
बेदुल के अब कान पिरावत, खेदू के सुन क्रूर घमंड
+
मगर इंकर तारीफ होय नइ, निंदा तक बर आवत लाज।”
बेदुल के नकडेंवा चढ़गे, ओहर सवा सेव बन गीस।
+
मेहरुबोलिस – “ठीक कहत हस, अब सवाल के उत्तर लान –
खेदू ला भन्ना के पूछिस -”तंय अस कोन करत का काम
+
रिहिस रायपुर मं कई बूता, तब तंय उहां कोन दिन गेस!
मंय हा चहत तोर सच परिचय, ताकि तोर जस हर ठंव गांव?”
+
टी। वी। अउ अकाशवाणी मं, तोर जाय के रिहिस विचार
खेदू कहिथय “पिया चुके हंव, मोर शक्ति ला सब के कान
+
उहां तोर का बूता निपटिस, होगिस का पूरा उद्देश्य?”
पर अब गर्व साथ खोलत हंव, मोर सिंहासन कतका ऊंच!
+
बहल किहिस “मंय गांव मं रहिथंव, तंहू करत हस गांव निवास
मंय करथंव अपराध बेहिचक, मोला जम्हड़ लेत कानून
+
मोर व्यथा ला तंय हा सुनबे, अतका असन रखत विश्वास-
पुलिस अदालत प्रकरण चलथय, खेदू पाय कड़ाकड़ दण्ड।
+
हंसिया श्रमिक कमावत खेती, पर भरपेट अन्न नइ पाय
पर मंय साक्षी ला फोरत हंव, या धमकी झड़ खेदत दूर
+
हम्मन गंवई मं बसथन तब तो, साहित्य मं बुझावत नाम।
जब आरोप सिद्ध नइ होवय, मंय निर्दाेष प्रमाणित होत।”
+
लकर धकर मंय गेंव रायपुर, रचना धर साहित्यिक काम
खेदू टेस बतावत पर बेदुल कांपत जस पाना।
+
लेकिन उहां पूछ नइ होइस, अउ उपरहा कटागे नाक।
आखिर जब सइहारन मुस्कुल क्रोध फुटिस बन लावा।
+
मंय अकाशवाणी तिर ठाढ़े, अंदर जाय रुकत हे पांव
भड़किस – “रोक प्रशंसा ला अब, अति के अंत होय के टेम
+
केन्द्र के रुतबा अड़बड़ होथय, तभे सुकुड़दुम मन डर्रात।
पांप के मरकी भरत लबालब, तभे हमर अस लेवत जन्म।”
+
मोला लड्डू भृत्य हा मिलगे, उही हा देइस नेक सलाह –
खेदू के टोंटा ला पकड़िस, अपन डहर झींकिस हेचकार
+
“तंय अधिकारी तिर जा निश्चय, बात बोल मंदरस अस मीठ।
भिड़ के शुरुकरिस दोंगरे बर, सरलग चलत मार के वार।
+
कहिबे -”निहू पदी दिन काटत, टीमटाम ले रहिथंव दूर
कृषक हा बइला ला गुचकेलत, डुठरी ला कोटेला दमकात
+
इहां लड़े बर नइ आए हंव, सिरिफ सधाहंव खुद के काम।”
बेदुल हा खेदू ला झोरत, यद्यपि अपन हंफर लरघात।
+
कार्यालय मं पहुंच गेंव मंय, मन ला करके पक्का।
खेदू ला भुइया मं पटकिस, ओकर वक्ष राख दिस पांव
+
देख कार्यक्रम अधिधाशी हा, मारिस बात के धक्का।
खेदू ला बरनिया के देखत, खुद के परिचय साफ बतात –
+
“जनम के कोंदा अस तंय लगथस, तब बक खाके देखत मात्र
“मरखण्डा ला मंय पहटाथंव, हत्यारा के लेथंव प्राण
+
का विचार पहुंचे हस काबर, कुछ तो बोल भला इंसान?”
शोषक के मंय शोषण करथंव, मंय खुश होवत ओला लूट।
+
ऊपर ले खाल्हे तक घुरिया, साहब ढिलिस व्यंग्य के बाण
न्यायालय समाज पंचायत, शासन साथ पुलिस कानून
+
लेकिन मंय हा सिकुड़ खड़े बस – सांवा बीच मं कंपसत धान।
एमन अपराधी ला छोड़त, यने दण्ड देवन नइ पांय।
+
मंय बोलेव – “रहत हंव मंय हा, अटल गंवई हे गोदरी गांव
तब मंय हा जघन्य मुजरिम ला, अपन हाथ ले देवत दण्ड
+
कृषक श्रमिक अउ गांव संबंधित, तुम्हर पास रचना ला लाय।
ओकर नसना रटरट टूटत, मंय मन भर पावत संतोष।”
+
पहिली भेजे हंव रचना कइ, मगर मुड़ा नइ गीस जवाब
मनसे भीड़ कड़कड़ा देखत, मगर करत नइ बीच बचाव
+
तब मंय हार इहां आए हंव, मोर प्रार्थना सुन लव आप –
चलत दृष्य के करत समीक्षा, चम्पी तक हा झोंकिस राग –
+
आकाशवाणी ले चाहत हंव, अपन नाम सब तन बगराय
“खेदू हे समाज के दुश्मन, पथरा हृदय बहुत हे क्रूर
+
बिन प्रचार उदगरना मुस्कुल, करिहव कृपा मथत मंय आय।”
ओकर दउहा मिटना चहिये, तब समाप्त जग अत्याचार।
+
साहब हा बरनिया के बोलिस -”कान टेंड़ सुन सही सलाह
बेदुल असन बनंय सब मनसे, जेन करत एक तौल नियाव
+
लेखक लइक तोर नइ थोथना, दरपन देख लगा ले थाह।
अपराधी ला दण्डित करथय, दीन हीन ला प्रेम सहाय।”
+
सांगर मोंगर अड़िल युवक हस, गांव लहुट के नांगर जोंत
तब मेहरुहा बहल ला बोलिस – “फोर पात नइ अपन विचार
+
काम असादी के बदला मं, श्रम करके झड़ गांकर रोंठ।”
पक्ष विपक्ष कते तन दउड़ंव, दूनों बीच कलेचुप ठाड़।
+
हंसिस कार्यक्रम अधिधाशी हा, पर मंय मानेव कहां खराब!
अनियायी के भरभस टूटय, अत्याचार के बिन्द्राबिनास
+
गोड़ तरी मोंगरा खुतलाथय, तब ले ओहर देत सुगंध।
पर समाप्त बर कते तरीका, भूमि लुकाय कंद अस ज्वाप।
+
मंय बोलेंव – “नम्र बोलत हंव, पर तुम उल्टा मारत लात
अपराधी शोषक परपीड़क, पापी जनअरि मनखेमार
+
मंहू आदमी आंव तुम्हर अस, पाप करे नइ रहि देहात।
इनकर नसना ला टोरे बर, दण्ड दीन – जीवन हर लीन।
+
बिगर पलोंदी बेल बढ़य नइ, ना बिन खम्हिया उपर मचान
तउन क्रांतिकारी ईश्वर बन, सब झन पास प्रतिष्ठा पैन
+
धर आसरा इहां आए हंव, पर खिसिया के बेधत बान।
उनकर होत अर्चना पूजा, कवि मन लिखिन आरती गीत।
+
कवि उमेंदसिंग बसय करेला, जेन लड़िस गोरा मन साथ
पर एकर फल करुनिकलगे, गलत राह पकड़िन इंसान
+
जन जागृति मं जीवन अर्पित, ओकर नाम कहां हे आज?
हिंसा युद्ध बढ़िस दिन दूना, शासन करिस अशांति तबाह।
+
जयशंकर प्रेमचंद निराला, इंकर अमर अंतिम तक नाम
जइसन करनी वइसन भरनी, पालत अगर इहिच सिद्धान्त
+
पर उमेंद ला कोन हा जानत, ओकर रचना गिस यम धाम।
बम के बदला बम हा गिरिहय, राख बदल जाहय संसार।”
+
छिदिर बिदिर होगे सब रचना, एकोझन नइ रखिन सम्हाल
आगी हा जब बरत धकाधक, रोटी सेंके बर मन होत
+
ओकर पुस्तक छप नइ पाइस, तब का जानंय बाल गोपाल!”
बहल के मन होवत बोले बर, हेरत बचन धान अस ठोस-
+
मोर कथा ला साहब सुन लिस, भड़क गीस आंखी कर लाल –
“आग ला’ अग्नि शमन दल, रोकत, रुकत तबाही होवत शांत
+
“तोर असन कतरो लेखक ला, मंय हा रखत दाब के कांख।
तइसे नवा राह हम ढूंढन, तब संभव जग के कल्याण।”
+
हगरुपदरुलेखक बनथव, कोन कमाहय बरसा धाम
झंझट चलत तउन अंतिम तंह, दुनों विश्वविद्यालय गीन
+
गांव लहुट के काम बजा तंय, लेख जाय यमराज के धाम।
उहां रिहिस ढेला कवियित्री, तेकर साथ भेंट हो गीस।
+
छोड़ लफरही निकल इहां ले भड़कत मोर मइन्ता।
ढेला उंहचे करत नौकरी, पाय प्रवक्ता पद जे उच्च
+
वरना बुढ़ना ला झर्राहंव, करिहंव तोर हइन्ता।
ओकर रुतबा सब ले बाहिर, लेकिन रखत कपट मं दाब।
+
साहब ला गिनगिन के पत लिस, पर मंय बायबिरिंग ना क्लान्त
ढेला हा मेहरुला बोलिस -”मोर नाम चर्चित सब ओर
+
बिच्छी हा चटपट झड़काथय, मर्थे व्यक्ति रहि जाथय शांत।
दैनिक पत्र हा स्वीकृति देथय, कई ठक पुस्तक छपगे मोर।
+
मंय हा उहां ले हट के आएंव – गेंव उबली के पान दुकान
दिखत दूरदर्शन मं मंय हा, मिंहिच पाठ्य पुस्तक मं छाय
+
जहां बात के परिस अभेड़ा, उबली लग गिस सत्य बतान।
देत समीक्षक मन हा इज्जत, साहित्य मं प्रकाशित नाम।”
+
ओहर किहिस – “आय हस हंफरत, लेकिन व्यर्थ जात सब खर्च।
गांव के लेखक आय बहल हा, चुपे सुनत ढेला के डींग
+
साहब मन टेंड़ुंवा गोठियाथंय, आंजत आँख व्यंग्य के मिर्च।
जतका ऊंच डींग हा जावत, उसने बहल के फइलत आंख।
+
राजबजन्त्री राई दोहाई, अस तस पर देवंय नइ ध्यान
जब ढेला हा उहां ले हटगिस, बहल अैेस मेहरुके पास
+
इंकर साथ परिचय अउ बइठक, बस ओमन पाथंय अस्थान।
पूछिस -”ढेला जे उच्चारिस, ओमां कतका प्रतिशत ठीक?”
+
हम्मन इही पास मं रहिथन, जानत साहब मन के पोल
मेहरुकथय -”किहिस ढेला हा, तेन बात हा बिल्कुल ठोस
+
ओमन चाय पान बर आथंय, आपुस मं गोठियाथंय खोल।”
शिक्षा उच्च पाय मिहनत कर, संस्था उच्च पाय पद उच्च।
+
ओतकी मं बोलिस ट्रांजिस्टर, सुघर ददरिया झड़के बाद
पर अचरज के तथ्य मंय राखत, जीवन पद्धति राखत खोल
+
दानी के कहना ला सुन लव, जे मनसे के जतका साद।
संस्था परिसर रहत रात दिन, पुस्तक संग संबंध प्रगाढ़।
+
कृषक बसुन्दरा मांईलोगन, बंद करव तुम चिर्री गाज
अपन ला प्रतिष्ठित समझत हें, जन सामान्य ले रहिथंय दूर
+
रचना के नामे ला सुन लव – गांव गंवई के रीति रिवाज।
उंकर पास नइ खुद के अनुभव, पर के पांव चलत हें राह।
+
उबली जे ठौंका ला बोलिस, ओकर मंय पा लेंव प्रमाण
कथा ला पढ़ के लिखत कहानी, पर के दृष्य विचार चुरात
+
दानी के रचना हा स्वीकृत, मंय हा क्रूर शब्द भर पाय।”
समय हा परिवर्तित हो जावत, तेकर ले ओहर अनजान।
+
एकर बाद बहल अउ बोलिस – “दानी करथय नगर निवास
भूतकाल के कथा जउन हे, ओला वर्तमान लिख देत
+
जमों क्षेत्र मं पात सफलता, चढ़े हवय साहित्यकाश।
अपन समय ला पहिचानय नइ, कहां ले लिखहीं सत्य यथार्थ!”
+
लेकिन हम तुम गांव मं रहिथन, ते कारन हम जावत गर्त
मेहरुबात चलावत जावत, तभे बहल ला मारिस रोक –
+
हमर लेख मन बिगर पुछन्ता, हारत हन साहित्यिक शर्त।”
“जेन काम दूसर मन करथंय, उहिच काम तंय तक धर लेस।
+
मेहरुकथय – ठीक बोलत हस, होत शहर साधन सम्पन्न
उच्च विशिष्ट जउन मनसे हे, उंकर होत आलोचना खूब
+
टी। वी। रेडियो पत्र प्रकाशन, संघ समीक्षक नाम इनाम।
उंकरेच बाद प्रशंसा होवत, आखिर चर्चित उंकरेच नाम।
+
उहां के लेखक चर्चित होथय, जुड़त पाठ्य पुस्तक मं नाम
सिंचित भूमि मं किसान मन हा, डारत बीज लान के कर्ज
+
लेखक श्रेष्ठ कहात उही मन, होत प्रशंसित उंकरेच नाम।
उहिच भूमि मं करत किसानी, नफा होय या हो नुकसान।
+
लेकिन एकर ए मतलब नइ, हम्मन छोड़ देन फट गांव
भूमि कन्हार जमीन असिंचित, एला देख भगात किसान
+
कर्म करत हम मांग ला राखन, उहू कर्म हो प्रतिभावान।
 +
न्यायालय मं जइसन होथय, घुरुवा मन पर आइस कष्ट
 +
उंकर कथा ला काव्य बनावत, होय असच के टायर भस्ट।
 
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16:46, 7 जनवरी 2017 के समय का अवतरण

फसल होय झन होय तभो ले, निष्फलता के अर्थ लगात।
दीन हीन लघु पद देहाती, एमन करत ठोसलग काम
मगर इंकर तारीफ होय नइ, निंदा तक बर आवत लाज।”
मेहरुबोलिस – “ठीक कहत हस, अब सवाल के उत्तर लान –
रिहिस रायपुर मं कई बूता, तब तंय उहां कोन दिन गेस!
टी। वी। अउ अकाशवाणी मं, तोर जाय के रिहिस विचार
उहां तोर का बूता निपटिस, होगिस का पूरा उद्देश्य?”
बहल किहिस – “मंय गांव मं रहिथंव, तंहू करत हस गांव निवास
मोर व्यथा ला तंय हा सुनबे, अतका असन रखत विश्वास-
हंसिया श्रमिक कमावत खेती, पर भरपेट अन्न नइ पाय
हम्मन गंवई मं बसथन तब तो, साहित्य मं बुझावत नाम।
लकर धकर मंय गेंव रायपुर, रचना धर साहित्यिक काम
लेकिन उहां पूछ नइ होइस, अउ उपरहा कटागे नाक।
मंय अकाशवाणी तिर ठाढ़े, अंदर जाय रुकत हे पांव
केन्द्र के रुतबा अड़बड़ होथय, तभे सुकुड़दुम मन डर्रात।
मोला लड्डू भृत्य हा मिलगे, उही हा देइस नेक सलाह –
“तंय अधिकारी तिर जा निश्चय, बात बोल मंदरस अस मीठ।
कहिबे -”निहू पदी दिन काटत, टीमटाम ले रहिथंव दूर
इहां लड़े बर नइ आए हंव, सिरिफ सधाहंव खुद के काम।”
कार्यालय मं पहुंच गेंव मंय, मन ला करके पक्का।
देख कार्यक्रम अधिधाशी हा, मारिस बात के धक्का।
“जनम के कोंदा अस तंय लगथस, तब बक खाके देखत मात्र
का विचार पहुंचे हस काबर, कुछ तो बोल भला इंसान?”
ऊपर ले खाल्हे तक घुरिया, साहब ढिलिस व्यंग्य के बाण
लेकिन मंय हा सिकुड़ खड़े बस – सांवा बीच मं कंपसत धान।
मंय बोलेव – “रहत हंव मंय हा, अटल गंवई हे गोदरी गांव
कृषक श्रमिक अउ गांव संबंधित, तुम्हर पास रचना ला लाय।
पहिली भेजे हंव रचना कइ, मगर मुड़ा नइ गीस जवाब
तब मंय हार इहां आए हंव, मोर प्रार्थना सुन लव आप –
आकाशवाणी ले चाहत हंव, अपन नाम सब तन बगराय
बिन प्रचार उदगरना मुस्कुल, करिहव कृपा मथत मंय आय।”
साहब हा बरनिया के बोलिस -”कान टेंड़ सुन सही सलाह
लेखक लइक तोर नइ थोथना, दरपन देख लगा ले थाह।
सांगर मोंगर अड़िल युवक हस, गांव लहुट के नांगर जोंत
काम असादी के बदला मं, श्रम करके झड़ गांकर रोंठ।”
हंसिस कार्यक्रम अधिधाशी हा, पर मंय मानेव कहां खराब!
गोड़ तरी मोंगरा खुतलाथय, तब ले ओहर देत सुगंध।
मंय बोलेंव – “नम्र बोलत हंव, पर तुम उल्टा मारत लात
मंहू आदमी आंव तुम्हर अस, पाप करे नइ रहि देहात।
बिगर पलोंदी बेल बढ़य नइ, ना बिन खम्हिया उपर मचान
धर आसरा इहां आए हंव, पर खिसिया के बेधत बान।
कवि उमेंदसिंग बसय करेला, जेन लड़िस गोरा मन साथ
जन जागृति मं जीवन अर्पित, ओकर नाम कहां हे आज?
जयशंकर प्रेमचंद निराला, इंकर अमर अंतिम तक नाम
पर उमेंद ला कोन हा जानत, ओकर रचना गिस यम धाम।
छिदिर बिदिर होगे सब रचना, एकोझन नइ रखिन सम्हाल
ओकर पुस्तक छप नइ पाइस, तब का जानंय बाल गोपाल!”
मोर कथा ला साहब सुन लिस, भड़क गीस आंखी कर लाल –
“तोर असन कतरो लेखक ला, मंय हा रखत दाब के कांख।
हगरुपदरुलेखक बनथव, कोन कमाहय बरसा धाम
गांव लहुट के काम बजा तंय, लेख जाय यमराज के धाम।
छोड़ लफरही निकल इहां ले भड़कत मोर मइन्ता।
वरना बुढ़ना ला झर्राहंव, करिहंव तोर हइन्ता।
साहब ला गिनगिन के पत लिस, पर मंय बायबिरिंग ना क्लान्त
बिच्छी हा चटपट झड़काथय, मर्थे व्यक्ति रहि जाथय शांत।
मंय हा उहां ले हट के आएंव – गेंव उबली के पान दुकान
जहां बात के परिस अभेड़ा, उबली लग गिस सत्य बतान।
ओहर किहिस – “आय हस हंफरत, लेकिन व्यर्थ जात सब खर्च।
साहब मन टेंड़ुंवा गोठियाथंय, आंजत आँख व्यंग्य के मिर्च।
राजबजन्त्री राई दोहाई, अस तस पर देवंय नइ ध्यान
इंकर साथ परिचय अउ बइठक, बस ओमन पाथंय अस्थान।
हम्मन इही पास मं रहिथन, जानत साहब मन के पोल
ओमन चाय पान बर आथंय, आपुस मं गोठियाथंय खोल।”
ओतकी मं बोलिस ट्रांजिस्टर, सुघर ददरिया झड़के बाद –
दानी के कहना ला सुन लव, जे मनसे के जतका साद।
कृषक बसुन्दरा मांईलोगन, बंद करव तुम चिर्री गाज
रचना के नामे ला सुन लव – गांव गंवई के रीति रिवाज।
उबली जे ठौंका ला बोलिस, ओकर मंय पा लेंव प्रमाण
दानी के रचना हा स्वीकृत, मंय हा क्रूर शब्द भर पाय।”
एकर बाद बहल अउ बोलिस – “दानी करथय नगर निवास
जमों क्षेत्र मं पात सफलता, चढ़े हवय साहित्यकाश।
लेकिन हम तुम गांव मं रहिथन, ते कारन हम जावत गर्त
हमर लेख मन बिगर पुछन्ता, हारत हन साहित्यिक शर्त।”
मेहरुकथय – ठीक बोलत हस, होत शहर साधन सम्पन्न
टी। वी। रेडियो पत्र प्रकाशन, संघ समीक्षक नाम इनाम।
उहां के लेखक चर्चित होथय, जुड़त पाठ्य पुस्तक मं नाम
लेखक श्रेष्ठ कहात उही मन, होत प्रशंसित उंकरेच नाम।
लेकिन एकर ए मतलब नइ, हम्मन छोड़ देन फट गांव
कर्म करत हम मांग ला राखन, उहू कर्म हो प्रतिभावान।
न्यायालय मं जइसन होथय, घुरुवा मन पर आइस कष्ट
उंकर कथा ला काव्य बनावत, होय असच के टायर भस्ट।