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"कभी पाबंदियों से छुट के भी दम घुटने लगता है / फ़िराक़ गोरखपुरी" के अवतरणों में अंतर

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कभी पाबन्दियों से छूट के भी दम घुटने लगता है<BR>
 
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दरो-दीवार हो जिनमें वही ज़िन्दान नहीं होता<BR><BR>
 
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01:53, 3 सितम्बर 2008 का अवतरण

कभी पाबन्दियों से छूट के भी दम घुटने लगता है
दरो-दीवार हो जिनमें वही ज़िन्दान नहीं होता

हमारा ये तजुर्बा कि खुश होना मोहब्बत में
कभी मुश्किल नहीं होता, कभी आसान नहीं होता

बज़ा है ज़ब्त भी लेकिन मोहब्बत में कभी रो ले
दबाने के लिये हर दर्द-ओ-नादान नहीं होता

यकीं लायें तो क्या लायें, जो शक लायें तो क्या लायें
कि बातों से तेरी सच झूठ का इम्कां नहीं होता