भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जाड़े की राह / अलेक्सान्दर पूश्किन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अलेक्सान्दर पूश्किन |अनुवादक=शं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 14: पंक्ति 14:
 
सफ़ेद सूनी सड़कों पर
 
सफ़ेद सूनी सड़कों पर
 
जाड़े के अनन्त विस्तार में
 
जाड़े के अनन्त विस्तार में
मेरी त्रोइका भागी जाती है,
+
मेरी त्रोइका<ref>तीन घोड़ॊं वाली रूसी गाड़ी</ref> भागी जाती है,
 
और उसकी घण्टियाँ उनीन्दी,
 
और उसकी घण्टियाँ उनीन्दी,
 
थकी-थकी बजती चलती हैं।
 
थकी-थकी बजती चलती हैं।
पंक्ति 47: पंक्ति 47:
  
 
अँग्रेज़ी से अनुवाद : शंकर शरण
 
अँग्रेज़ी से अनुवाद : शंकर शरण
 +
 +
{{KKMeaning}}
 
</poem
 
</poem

16:14, 5 मार्च 2017 के समय का अवतरण

मद्धिम चाँद, छाया के आलिंगन में
निशा-बादलों की पहाड़ी पर चढ़ता है
और उदास वन-प्रान्तर में
अपना धूसर प्रकाश फैलाता है।

सफ़ेद सूनी सड़कों पर
जाड़े के अनन्त विस्तार में
मेरी त्रोइका<ref>तीन घोड़ॊं वाली रूसी गाड़ी</ref> भागी जाती है,
और उसकी घण्टियाँ उनीन्दी,
थकी-थकी बजती चलती हैं।

कोचवान अपने असमाप्य गीतों में
बहुत कुछ मुझसे कहता है,
कभी एक शिकायत, कभी एक तड़प,
कभी एक अलमस्त तरंग...

सब ओर बर्फ़ और कुछ भी नहीं,
कोई रोशनी नहीं जो आँखों को सुख दे,
मील के खम्भे भागते आते हैं मुझसे मिलने,
अभिवादन कर बेपरवाह बगल से गुज़र जाते हैं

पर, मेरी नीना, कल
आतिशदान की सुखद लपटों के पास
मैं अपनी उदासी, अपना दुख,
अपनी थकन तुम्हारी आँखों में भुला दूंगा।
घड़ी अपना समय-पथ
पार करती रहेगी —
पर अर्द्धरात्रि की उसकी पुकार से
तुम और मैं अलग नहीं होंगे।

अभी तो, पर उदास हूँ मैं... रात्रि
खेत, जंगल को अपने आगोश में ले रही है...
चाँद धूमिल हो रहा है...
अपनी जगह पर लोचवान ऊँघ रहा है,
और बर्फ़ में राह लम्बी और लम्बी
खिंचती जा रही है।

1826

अँग्रेज़ी से अनुवाद : शंकर शरण

शब्दार्थ
<references/>

</poem