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पण्डित लभु राम साहित्य में जोश मलसियानी के नाम से जाने गए। जोश मलसियानी का जन्म 1 फ़रवरी 1884 को जालन्धर में हुआ था। उनके दादा निहालचन्द गुड़ का कारोबार करते थे। पिता पण्डित मोतीराम भी भी क़स्बे के दूसरे लोगों की अनपढ़ थे। पेशावर के किस्सा ख्वानी बााज़ार में उनकी मिठाई दुकान थी। | पण्डित लभु राम साहित्य में जोश मलसियानी के नाम से जाने गए। जोश मलसियानी का जन्म 1 फ़रवरी 1884 को जालन्धर में हुआ था। उनके दादा निहालचन्द गुड़ का कारोबार करते थे। पिता पण्डित मोतीराम भी भी क़स्बे के दूसरे लोगों की अनपढ़ थे। पेशावर के किस्सा ख्वानी बााज़ार में उनकी मिठाई दुकान थी। |
03:50, 11 मार्च 2017 के समय का अवतरण
पण्डित लभु राम साहित्य में जोश मलसियानी के नाम से जाने गए। जोश मलसियानी का जन्म 1 फ़रवरी 1884 को जालन्धर में हुआ था। उनके दादा निहालचन्द गुड़ का कारोबार करते थे। पिता पण्डित मोतीराम भी भी क़स्बे के दूसरे लोगों की अनपढ़ थे। पेशावर के किस्सा ख्वानी बााज़ार में उनकी मिठाई दुकान थी।
शिक्षा
माँ ने बड़ी मेहनत और जतन से जोश को शिक्षा दिलवाई।उन्होंने 1897 में वर्नाक्यूलर मिडिल की परीक्षा पास की। जालन्धर के कई स्कूलों में अध्यापन का काम किया । जोश की शायरी और शतरंज से दिलचस्पी थी। शतरंज के बारे में एक बयाज़ भी संकलित की।
कलाम और रचनाएँ
जोश ने छात्र जीवन से ही शायरी करनी शुरू कर दी थी। मुद्दतों किसी को कलाम नहीं दिखाया। जब विक्टर हाई स्कूल जालन्धर में पढ़ाते थे, उन्हीं दिनों कहीं से दाग के शिष्य सैयद शब्बर हसन नसीम भरत पूरी का दीवान उनके हाथ लग गया। उसके बाद भाषा और साहित्य से सम्बन्धित कोई भी बात होती तो पत्र लिखकर उनसे पूछ लेते। उन्हीं के माध्यम से दाग के शिष्य भी हुए। गद्य में उनकी सबसे महत्वपूर्ण रचना ’दीवान-ए-ग़ालिब मा' शरह’ (व्याख्या के साथ) है, जो उन्होंने 1950 में लिखी थी। बाद में इकबाल की शायरी पर उनके लेखों की एक श्रृंखला साप्ताहिक पारस लाहौर में जर्राह के कलमी नाम से छुपा।
विशेष
आपने मासिक पत्रिका आजकल (उर्दू) का सम्पादन भी किया। 1971 में उन्हें पदमश्री सम्मान से सम्मानित किया गया। पण्डित बाल मुकुन्द (अर्श मलसियानी) उनके इकलौते पुत्र थे । 27 जनवरी 1976 को नकोदर में उनका निधन हो गया।