भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"लोडसेडिङ् / सुमन पोखरेल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुमन पोखरेल |अनुवादक= |संग्रह=जीव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=सुमन पोखरेल | |रचनाकार=सुमन पोखरेल | ||
|अनुवादक= | |अनुवादक= | ||
− | |संग्रह=जीवनको छेउबाट | + | |संग्रह=जीवनको छेउबाट / सुमन पोखरेल |
}} | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
{{KKCatNepaliRachna}} | {{KKCatNepaliRachna}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | ||
समय | समय | ||
अँध्यारो बोकेर | अँध्यारो बोकेर |
14:46, 15 मार्च 2017 का अवतरण
समय
अँध्यारो बोकेर
धर्तीभरि पोखिएको छ।
जून गौरवान्वित छ
एक्काइसौँ शताब्दीको पृथ्वी टेकेर उभिएको एक सहरको रात
केवल आफ्नो उज्यालो ओढी बाँचेको देखेर।
जिस्काउँदो छ, बादलमा लुकेर घरिघरि
तल छामछाम छुमछुम गर्दै हिँडिरहेका आकृतिहरूलार्इ।
आकाश आफ्नो पछ्यौरीभरि तारा टल्काएर खिज्याउँदो छ
मास्तिर हेर्ने जो कोहीलार्इ।
यस युगको धर्तीप्रतिको यो उपेक्षा देखेर रिसाउनुपर्थ्यो मैले सायद।
तर म आनन्द लिइरहेछु, यो लोडसेडिङको।
यो अँध्यारो
मेरो देशको
भूत, वर्तमान र भविष्यभन्दा
ज्यादा स्पस्ट लागिरहेछ।