भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जान गई मैं / आभा पूर्वे" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आभा पूर्वे |अनुवादक= |संग्रह=गुलम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 24: पंक्ति 24:
 
तुम्हारा
 
तुम्हारा
 
आना नहीं होता है।
 
आना नहीं होता है।
 
 
</poem>
 
</poem>

14:48, 31 मार्च 2017 के समय का अवतरण

आती नहीं है
अब वह उमंग
बादल को देखकर

आती नहीं है
अब वह
प्रीति
वैसी ही लौटकर

आता नहीं है
अब वह
महाकाव्य
मन के कोने पर

जान गई मैं
तुम्हारा
आना नहीं होता है।