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"एक देह / मंगलेश डबराल" के अवतरणों में अंतर
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01:21, 15 अप्रैल 2017 के समय का अवतरण
त्वचा आवाज़ों को सुनती है
ख़ामोशी की अपनी एक देह है
पैरों में भी निवास करती हैं संवेदनाएँ
पीठ की अपनी ही एक कहानी है
अभी-अभी दबी हथेली का
धीरे-धीरे उभरना
कुछ कहता है देर तक
(1990 में रचित)
