"जो समय बीत गया / पाब्लो नेरूदा" के अवतरणों में अंतर
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मैं जो कुछ भी लिखता जाता था | मैं जो कुछ भी लिखता जाता था | ||
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उस पर हंसी आती थी | उस पर हंसी आती थी | ||
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जगह-जगह वर्तनी के निशान लगाने पर | जगह-जगह वर्तनी के निशान लगाने पर | ||
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तमाम बड़े कवियों को | तमाम बड़े कवियों को | ||
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इस पर मैं अपने को दुत्कारता ही था | इस पर मैं अपने को दुत्कारता ही था | ||
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पूर्ण विराम लगाया तो पूरा पाप | पूर्ण विराम लगाया तो पूरा पाप | ||
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मैं महसूस करता | मैं महसूस करता | ||
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और महसूस करता एक अधूरा पाप | और महसूस करता एक अधूरा पाप | ||
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जब लिखे पर कॉमा लगाता | जब लिखे पर कॉमा लगाता | ||
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आश्चर्यजनचिन्ह पर | आश्चर्यजनचिन्ह पर | ||
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या सेमिक़ॉलन पर | या सेमिक़ॉलन पर | ||
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एहसास होता किसी आधे पाप का | एहसास होता किसी आधे पाप का | ||
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और जैसे पूर्वजों के पापों का भी | और जैसे पूर्वजों के पापों का भी | ||
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वे मेरे लिखे को | वे मेरे लिखे को | ||
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तमाम चर्चों में गाड़ देते | तमाम चर्चों में गाड़ देते | ||
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ख़ास एक समय चुनकर | ख़ास एक समय चुनकर | ||
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मेरे नामराशि वाले बन गए थे जो | मेरे नामराशि वाले बन गए थे जो | ||
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तीस मारखां बनने लगे | तीस मारखां बनने लगे | ||
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वे सभी सुबह की मुर्गे की बांग से ही पहले | वे सभी सुबह की मुर्गे की बांग से ही पहले | ||
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आख़िरकार डूबकर उठ गए संसार से | आख़िरकार डूबकर उठ गए संसार से | ||
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ताल और कुएं में डूबकर | ताल और कुएं में डूबकर | ||
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पेरसे और इलियट के साथ | पेरसे और इलियट के साथ | ||
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इसी दौरान मैं फंसा उलटते-पलटते | इसी दौरान मैं फंसा उलटते-पलटते | ||
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उस पंचाग में | उस पंचाग में | ||
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जिसे मेरे दादा-परदादा ने बनाया था कभी | जिसे मेरे दादा-परदादा ने बनाया था कभी | ||
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रोज़-ब-रोज़ फ़ीका पड़ गया था वह | रोज़-ब-रोज़ फ़ीका पड़ गया था वह | ||
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बिना किसी फूल को तलाशे हुए | बिना किसी फूल को तलाशे हुए | ||
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जिसे शायद ही किसी ने तलाश किया हो | जिसे शायद ही किसी ने तलाश किया हो | ||
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बिना कोई सितारा तलाशे आसमां में | बिना कोई सितारा तलाशे आसमां में | ||
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घुप्प नहीं हो गया जो अंधेरे में | घुप्प नहीं हो गया जो अंधेरे में | ||
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पूरी तरह से खोया मैं उसमें | पूरी तरह से खोया मैं उसमें | ||
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रसायनों को पीकर | रसायनों को पीकर | ||
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उस आसमां के साथ-साथ चलते हुए | उस आसमां के साथ-साथ चलते हुए | ||
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जिसके लिए नहीं है कोई प्रतीक | जिसके लिए नहीं है कोई प्रतीक | ||
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कभी वापसी होगी मेरी | कभी वापसी होगी मेरी | ||
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मेरे साथ होगा मेरा घोड़ा | मेरे साथ होगा मेरा घोड़ा | ||
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तभी मैं धर दूंगा उन सबको चुपचाप | तभी मैं धर दूंगा उन सबको चुपचाप | ||
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मैं रखूंगा निगाह जो बन रहे होंगे तीस मारखां | मैं रखूंगा निगाह जो बन रहे होंगे तीस मारखां | ||
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प्रगट हो चुके होंगे वे या नहीं | प्रगट हो चुके होंगे वे या नहीं | ||
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वे होंगे या काल्पनिक ही सही | वे होंगे या काल्पनिक ही सही | ||
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वे चाहे घुस जाएं किसी भी नए ग्रह में | वे चाहे घुस जाएं किसी भी नए ग्रह में | ||
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मैं जकड़ूगा उनको | मैं जकड़ूगा उनको | ||
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शिकंजे में अपने। | शिकंजे में अपने। | ||
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'''अनुवाद : प्रमोद कौंसवाल | '''अनुवाद : प्रमोद कौंसवाल |
10:47, 1 जून 2008 का अवतरण
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मैं जो कुछ भी लिखता जाता था
उस पर हंसी आती थी
जगह-जगह वर्तनी के निशान लगाने पर
तमाम बड़े कवियों को
इस पर मैं अपने को दुत्कारता ही था
पूर्ण विराम लगाया तो पूरा पाप
मैं महसूस करता
और महसूस करता एक अधूरा पाप
जब लिखे पर कॉमा लगाता
आश्चर्यजनचिन्ह पर
या सेमिक़ॉलन पर
एहसास होता किसी आधे पाप का
और जैसे पूर्वजों के पापों का भी
वे मेरे लिखे को
तमाम चर्चों में गाड़ देते
ख़ास एक समय चुनकर
मेरे नामराशि वाले बन गए थे जो
तीस मारखां बनने लगे
वे सभी सुबह की मुर्गे की बांग से ही पहले
आख़िरकार डूबकर उठ गए संसार से
ताल और कुएं में डूबकर
पेरसे और इलियट के साथ
इसी दौरान मैं फंसा उलटते-पलटते
उस पंचाग में
जिसे मेरे दादा-परदादा ने बनाया था कभी
रोज़-ब-रोज़ फ़ीका पड़ गया था वह
बिना किसी फूल को तलाशे हुए
जिसे शायद ही किसी ने तलाश किया हो
बिना कोई सितारा तलाशे आसमां में
घुप्प नहीं हो गया जो अंधेरे में
पूरी तरह से खोया मैं उसमें
रसायनों को पीकर
उस आसमां के साथ-साथ चलते हुए
जिसके लिए नहीं है कोई प्रतीक
कभी वापसी होगी मेरी
मेरे साथ होगा मेरा घोड़ा
तभी मैं धर दूंगा उन सबको चुपचाप
मैं रखूंगा निगाह जो बन रहे होंगे तीस मारखां
प्रगट हो चुके होंगे वे या नहीं
वे होंगे या काल्पनिक ही सही
वे चाहे घुस जाएं किसी भी नए ग्रह में
मैं जकड़ूगा उनको
शिकंजे में अपने।
अनुवाद : प्रमोद कौंसवाल