भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मौत / राजू सारसर ‘राज’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजू सारसर ‘राज’ |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=राजू सारसर ‘राज’ | |रचनाकार=राजू सारसर ‘राज’ | ||
|अनुवादक= | |अनुवादक= | ||
− | |संग्रह=म्हारै पांती रा सुपना / राजू सारसर ‘राज’ | + | |संग्रह=थार-सप्तक-1 / ओम पुरोहित ‘कागद’ ; म्हारै पांती रा सुपना / राजू सारसर ‘राज’ |
}} | }} | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} |
18:12, 9 जून 2017 के समय का अवतरण
मौत !
हां, मौत इज।
इण जगत री अेक
पै’ली, छेहली
आद अर बाद तांईं री
सनातन सांच।
म्हूं देख्यौ है डा’मौं।
जीं नैं लीलगी मौत
सिद्धार्थ देखी बीं नै
अर बुद्ध होग्यौ।
बुद्ध देखतो बा मौत आज तो
जाणूं कांईं बणतौ
पण म्हूं.....म्हूं, डरूं-फरूं
धूज जावै म्हारौ धीजौ
अर म्हूं जोवण ढूकूं
म्हारै अमरत्व रो कोई उपाव
म्हूं क्यूं नीं सोध सक्यौ
इण मौत सूं सिद्धार्थ।
सांच अळगौ क्यूं रे’ग्यौ
म्हां सूं
म्हारै अंतस सूं।