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"कुछ दोहे नीरज के / गोपालदास "नीरज"" के अवतरणों में अंतर

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मौसम कैसा भी रहे कैसी चले बयार
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बड़ा कठिन है भूलना पहला-पहला प्यार
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भारत माँ के नयन दो हिन्दू-मुस्लिम जान
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नहीं एक के बिना हो दूजे की पहचान
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बिना दबाये रस न दें ज्यों नींबू और आम
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दबे बिना पूरे न हों त्यों सरकारी काम
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अमरीका में मिल गया जब से उन्हें प्रवेश
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उनको भाता है नहीं अपना भारत देश
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जब तक कुर्सी जमे खालू और दुखराम
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तब तक भ्रष्टाचार को कैसे मिले विराम
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पहले चारा चर गये अब खायेंगे देश
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कुर्सी पर डाकू जमे धर नेता का भेष
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कवियों की और चोर की गति है एक समान
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दिल की चोरी कवि करे लूटे चोर मकान
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गो मैं हूँ मँझधार में आज बिना पतवार
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लेकिन कितनों को किया मैंने सागर पार
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जब हो चारों ही तरफ घोर घना अँधियार
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ऐसे में खद्योत भी पाते हैं सत्कार
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जिनको जाना था यहाँ पढ़ने को स्कूल
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जूतों पर पालिश करें वे भविष्य के फूल
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भूखा पेट न जानता क्या है धर्म-अधर्म
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बेच देय संतान तक, भूख न जाने शर्म
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दोहा वर है और है कविता वधू कुलीन
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जब इसकी भाँवर पड़ी जन्मे अर्थ नवीन
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गागर में सागर भरे मुँदरी में नवरत्न
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अगर न ये दोहा करे, है सब व्यर्थ प्रयत्न
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जहाँ मरण जिसका लिखा वो बानक बन आए
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मृत्यु नहीं जाये कहीं, व्यक्ति वहाँ खुद जाए
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टी.वी.ने हम पर किया यूँ छुप-छुप कर वार
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संस्कृति सब घायल हुई बिना तीर-तलवार
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दूरभाष का देश में जब से हुआ प्रचार
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तब से घर आते नहीं चिट्ठी पत्री तार
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आँखों का पानी मरा हम सबका यूँ आज
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सूख गये जल स्रोत सब इतनी आयी लाज
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करें मिलावट फिर न क्यों व्यापारी व्यापार
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जब कि मिलावट से बने रोज़ यहाँ सरकार
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रुके नहीं कोई यहाँ नामी हो कि अनाम
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कोई जाये सुबह् को कोई जाये शाम
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ज्ञानी हो फिर भी न कर दुर्जन संग निवास
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सर्प सर्प है, भले ही मणि हो उसके पास
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अद्भुत इस गणतंत्र के अद्भुत हैं षडयंत्र
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संत पड़े हैं जेल में, डाकू फिरें स्वतंत्र
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राजनीति के खेल ये समझ सका है कौन
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बहरों को भी बँट रहे अब मोबाइल फोन
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राजनीति शतरंज है, विजय यहाँ वो पाय
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राजनीति शतरंज है, विजय यहाँ वो पाय<br>
जब राजा फँसता दिखे पैदल दे पिटवाय
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जब राजा फँसता दिखे पैदल दे पिटवाय<br>
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भक्तों में कोई नहीं बड़ा सूर से नाम
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उसने आँखों के बिना देख लिये घनश्याम
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चील, बाज़ और गिद्ध अब घेरे हैं आकाश
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भक्तों में कोई नहीं बड़ा सूर से नाम<br>
कोयल, मैना, शुकों का पिंजड़ा है अधिवास
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उसने आँखों के बिना देख लिये घनश्याम<br>
  
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सेक्युलर होने का उन्हें जब से चढ़ा जुनून
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चील, बाज़ और गिद्ध अब घेरे हैं आकाश<br>
पानी लगता है उन्हें हर हिन्दू का खून
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कोयल, मैना, शुकों का पिंजड़ा है अधिवास<br>
  
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हिन्दी, हिन्दू, हिन्द ही है इसकी पहचान
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सेक्युलर होने का उन्हें जब से चढ़ा जुनून<br>
इसीलिए इस देश को कहते हिन्दुस्तान
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पानी लगता है उन्हें हर हिन्दू का खून<br>
  
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रहा चिकित्साशास्त्र जो जनसेवा का कर्म
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हिन्दी, हिन्दू, हिन्द ही है इसकी पहचान<br>
आज डॉक्टरों ने उसे बना दिया बेशर्म
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इसीलिए इस देश को कहते हिन्दुस्तान<br>
  
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दूध पिलाये हाथ जो डसे उसे भी साँप
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रहा चिकित्साशास्त्र जो जनसेवा का कर्म<br>
दुष्ट न त्यागे दुष्टता कुछ भी कर लें आप
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आज डॉक्टरों ने उसे बना दिया बेशर्म<br>
  
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तोड़ो, मसलो या कि तुम उस पर डालो धूल
+
दूध पिलाये हाथ जो डसे उसे भी साँप<br>
बदले में लेकिन तुम्हें खुशबू ही दे फूल
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दुष्ट न त्यागे दुष्टता कुछ भी कर लें आप<br>
  
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पूजा के सम पूज्य है जो भी हो व्यवसाय
+
तोड़ो, मसलो या कि तुम उस पर डालो धूल<br>
उसमें ऐसे रमो ज्यों जल में दूध समाय
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बदले में लेकिन तुम्हें खुशबू ही दे फूल<br>
  
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हम कितना जीवित रहे, इसका नहीं महत्व
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पूजा के सम पूज्य है जो भी हो व्यवसाय<br>
हम कैसे जीवित रहे, यही तत्व अमरत्व
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उसमें ऐसे रमो ज्यों जल में दूध समाय<br>
  
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जीने को हमको मिले यद्यपि दिन दो-चार
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हम कितना जीवित रहे, इसका नहीं महत्व<br>
जिएँ मगर हम इस तरह हर दिन बनें हजार
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हम कैसे जीवित रहे, यही तत्व अमरत्व<br>
  
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सेज है सूनी सजन बिन, फूलों के बिन बाग़
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जीने को हमको मिले यद्यपि दिन दो-चार<br>
घर सूना बच्चों बिना, सेंदुर बिना सुहाग
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जिएँ मगर हम इस तरह हर दिन बनें हजार<br>
  
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यदि यूँ ही हावी रहा इक समुदाय विशेष
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सेज है सूनी सजन बिन, फूलों के बिन बाग़<br>
निश्चित होगा एक दिन खण्ड-खण्ड ये देश
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घर सूना बच्चों बिना, सेंदुर बिना सुहाग<br>
  
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बन्दर चूके डाल को, और आषाढ़ किसान
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यदि यूँ ही हावी रहा इक समुदाय विशेष<br>
दोनों के ही लिए है ये गति मरण समान
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चिडि़या है बिन पंख की कहते जिसको आयु
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इससे ज्यादा तेज़ तो चले न कोई वायु
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दोनों के ही लिए है ये गति मरण समान<br>
  
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बुरे दिनों में कर नहीं कभी किसी से आस
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चिडि़या है बिन पंख की कहते जिसको आयु<br>
परछाई भी साथ दे, जब तक रहे प्रकाश
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यदि तुम पियो शराब तो इतना रखना याद
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इस शराब ने हैं किये, कितने घर बर्बाद
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जब कम हो घर में जगह हो कम ही सामान
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यदि तुम पियो शराब तो इतना रखना याद<br>
उचित नहीं है जोड़ना तब ज्यादा मेहमान
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रहे शाम से सुबह तक मय का नशा ख़ुमार
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जब कम हो घर में जगह हो कम ही सामान<br>
लेकिन धन का तो नशा कभी न उतरे यार
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उचित नहीं है जोड़ना तब ज्यादा मेहमान<br>
  
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जीवन पीछे को नहीं आगे बढ़ता नित्य
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रहे शाम से सुबह तक मय का नशा ख़ुमार<br>
नहीं पुरातन से कभी सजे नया साहित्य
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लेकिन धन का तो नशा कभी न उतरे यार<br>
  
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रामराज्य में इस कदर फैली लूटम-लूट
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जीवन पीछे को नहीं आगे बढ़ता नित्य<br>
दाम बुराई के बढ़े, सच्चाई पर छूट
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नहीं पुरातन से कभी सजे नया साहित्य<br>
  
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स्नेह, शान्ति, सुख, सदा ही करते वहाँ निवास
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रामराज्य में इस कदर फैली लूटम-लूट<br>
निष्ठा जिस घर माँ बने, पिता बने विश्वास
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जीवन का रस्ता पथिक सीधा सरल न जान
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बहुत बार होते ग़लत मंज़िल के अनुमान
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निष्ठा जिस घर माँ बने, पिता बने विश्वास<br>
  
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किया जाए नेता यहाँ, अच्छा वही शुमार
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जीवन का रस्ता पथिक सीधा सरल न जान<br>
सच कहकर जो झूठ को देता गले उतार
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बहुत बार होते ग़लत मंज़िल के अनुमान<br>
  
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जब से वो बरगद गिरा, बिछड़ी उसकी छाँव
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किया जाए नेता यहाँ, अच्छा वही शुमार<br>
लगता एक अनाथ-सा सबका सब वो गाँव
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सच कहकर जो झूठ को देता गले उतार<br>
  
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अपना देश महान् है, इसका क्या है अर्थ
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जब से वो बरगद गिरा, बिछड़ी उसकी छाँव<br>
आरक्षण हैं चार के, मगर एक है बर्थ
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लगता एक अनाथ-सा सबका सब वो गाँव<br>
  
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दीपक तो जलता यहाँ सिर्फ एक ही बार
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अपना देश महान् है, इसका क्या है अर्थ<br>
दिल लेकिन वो चीज़ है जले हज़ारों बार
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आरक्षण हैं चार के, मगर एक है बर्थ<br>
  
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काग़ज़ की एक नाव पर मैं हूँ आज सवार
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दीपक तो जलता यहाँ सिर्फ एक ही बार<br>
और इसी से है मुझे करना सागर पार
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दिल लेकिन वो चीज़ है जले हज़ारों बार<br>
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काग़ज़ की एक नाव पर मैं हूँ आज सवार<br>
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और इसी से है मुझे करना सागर पार<br>

20:14, 6 जून 2008 का अवतरण


कुछ दोहे नीरज के
Dohe neeraj ke.jpg
रचनाकार गोपालदास "नीरज"
प्रकाशक डायमण्ड पॉकेट बुक्स, नई दिल्ली
वर्ष 2005
भाषा हिन्दी
विषय कविताएँ
विधा
पृष्ठ 136
ISBN
विविध
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।



(1)
मौसम कैसा भी रहे कैसी चले बयार
बड़ा कठिन है भूलना पहला-पहला प्यार

(2)
भारत माँ के नयन दो हिन्दू-मुस्लिम जान
नहीं एक के बिना हो दूजे की पहचान

(3)
बिना दबाये रस न दें ज्यों नींबू और आम
दबे बिना पूरे न हों त्यों सरकारी काम

(4)
अमरीका में मिल गया जब से उन्हें प्रवेश
उनको भाता है नहीं अपना भारत देश

(5)
जब तक कुर्सी जमे खालू और दुखराम
तब तक भ्रष्टाचार को कैसे मिले विराम

(6)
पहले चारा चर गये अब खायेंगे देश
कुर्सी पर डाकू जमे धर नेता का भेष

(7)
कवियों की और चोर की गति है एक समान
दिल की चोरी कवि करे लूटे चोर मकान

(8)
गो मैं हूँ मँझधार में आज बिना पतवार
लेकिन कितनों को किया मैंने सागर पार

(9)
जब हो चारों ही तरफ घोर घना अँधियार
ऐसे में खद्योत भी पाते हैं सत्कार

(10)
जिनको जाना था यहाँ पढ़ने को स्कूल
जूतों पर पालिश करें वे भविष्य के फूल

(11)
भूखा पेट न जानता क्या है धर्म-अधर्म
बेच देय संतान तक, भूख न जाने शर्म

(12)
दोहा वर है और है कविता वधू कुलीन
जब इसकी भाँवर पड़ी जन्मे अर्थ नवीन

(13)
गागर में सागर भरे मुँदरी में नवरत्न
अगर न ये दोहा करे, है सब व्यर्थ प्रयत्न

(14)
जहाँ मरण जिसका लिखा वो बानक बन आए
मृत्यु नहीं जाये कहीं, व्यक्ति वहाँ खुद जाए

(15)
टी.वी.ने हम पर किया यूँ छुप-छुप कर वार
संस्कृति सब घायल हुई बिना तीर-तलवार

(16)
दूरभाष का देश में जब से हुआ प्रचार
तब से घर आते नहीं चिट्ठी पत्री तार

(17)
आँखों का पानी मरा हम सबका यूँ आज
सूख गये जल स्रोत सब इतनी आयी लाज

(18)
करें मिलावट फिर न क्यों व्यापारी व्यापार
जब कि मिलावट से बने रोज़ यहाँ सरकार

(19)
रुके नहीं कोई यहाँ नामी हो कि अनाम
कोई जाये सुबह् को कोई जाये शाम

(20)

ज्ञानी हो फिर भी न कर दुर्जन संग निवास
सर्प सर्प है, भले ही मणि हो उसके पास

(21)
अद्भुत इस गणतंत्र के अद्भुत हैं षडयंत्र
संत पड़े हैं जेल में, डाकू फिरें स्वतंत्र

(22)
राजनीति के खेल ये समझ सका है कौन
बहरों को भी बँट रहे अब मोबाइल फोन

(23)
राजनीति शतरंज है, विजय यहाँ वो पाय
जब राजा फँसता दिखे पैदल दे पिटवाय

(24)
भक्तों में कोई नहीं बड़ा सूर से नाम
उसने आँखों के बिना देख लिये घनश्याम

(25)
चील, बाज़ और गिद्ध अब घेरे हैं आकाश
कोयल, मैना, शुकों का पिंजड़ा है अधिवास

(26)
सेक्युलर होने का उन्हें जब से चढ़ा जुनून
पानी लगता है उन्हें हर हिन्दू का खून

(27)
हिन्दी, हिन्दू, हिन्द ही है इसकी पहचान
इसीलिए इस देश को कहते हिन्दुस्तान

(28)
रहा चिकित्साशास्त्र जो जनसेवा का कर्म
आज डॉक्टरों ने उसे बना दिया बेशर्म

(29)
दूध पिलाये हाथ जो डसे उसे भी साँप
दुष्ट न त्यागे दुष्टता कुछ भी कर लें आप

(30)
तोड़ो, मसलो या कि तुम उस पर डालो धूल
बदले में लेकिन तुम्हें खुशबू ही दे फूल

(31)
पूजा के सम पूज्य है जो भी हो व्यवसाय
उसमें ऐसे रमो ज्यों जल में दूध समाय

(32)
हम कितना जीवित रहे, इसका नहीं महत्व
हम कैसे जीवित रहे, यही तत्व अमरत्व

(33)
जीने को हमको मिले यद्यपि दिन दो-चार
जिएँ मगर हम इस तरह हर दिन बनें हजार

(34)
सेज है सूनी सजन बिन, फूलों के बिन बाग़
घर सूना बच्चों बिना, सेंदुर बिना सुहाग

(35)
यदि यूँ ही हावी रहा इक समुदाय विशेष
निश्चित होगा एक दिन खण्ड-खण्ड ये देश

(36)
बन्दर चूके डाल को, और आषाढ़ किसान
दोनों के ही लिए है ये गति मरण समान

(37)
चिडि़या है बिन पंख की कहते जिसको आयु
इससे ज्यादा तेज़ तो चले न कोई वायु

(38)
बुरे दिनों में कर नहीं कभी किसी से आस
परछाई भी साथ दे, जब तक रहे प्रकाश

(39)
यदि तुम पियो शराब तो इतना रखना याद
इस शराब ने हैं किये, कितने घर बर्बाद

(40)
जब कम हो घर में जगह हो कम ही सामान
उचित नहीं है जोड़ना तब ज्यादा मेहमान

(41)
रहे शाम से सुबह तक मय का नशा ख़ुमार
लेकिन धन का तो नशा कभी न उतरे यार

(42)
जीवन पीछे को नहीं आगे बढ़ता नित्य
नहीं पुरातन से कभी सजे नया साहित्य

(43)
रामराज्य में इस कदर फैली लूटम-लूट
दाम बुराई के बढ़े, सच्चाई पर छूट

(44)
स्नेह, शान्ति, सुख, सदा ही करते वहाँ निवास
निष्ठा जिस घर माँ बने, पिता बने विश्वास

(45)
जीवन का रस्ता पथिक सीधा सरल न जान
बहुत बार होते ग़लत मंज़िल के अनुमान

(46)
किया जाए नेता यहाँ, अच्छा वही शुमार
सच कहकर जो झूठ को देता गले उतार

(47)
जब से वो बरगद गिरा, बिछड़ी उसकी छाँव
लगता एक अनाथ-सा सबका सब वो गाँव

(48)
अपना देश महान् है, इसका क्या है अर्थ
आरक्षण हैं चार के, मगर एक है बर्थ

(49)
दीपक तो जलता यहाँ सिर्फ एक ही बार
दिल लेकिन वो चीज़ है जले हज़ारों बार

(50)
काग़ज़ की एक नाव पर मैं हूँ आज सवार
और इसी से है मुझे करना सागर पार