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"गजल कहो आसान नहीं है / अमरेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

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ये शोभा नहीं देता तुमको सिहर जा
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गजल कहो आसान नहीं है
मसोमात की है फसल बेटे चर जा
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लेकिन यह वरदान नहीं है
  
डराए अगर तुमको दरिया की मौजें
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गजल बयां की बारीकी है
तू दरिया के सीने में चल के उतर जा
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रुक्नों का अरकान नहीं है
  
मेरी ओर ताने गुलेली की गोली
+
अपना दुख तो कलियुग जैसा
मुझे कह रहा है वो बरसों से डर जा
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दो दिन का मेहमान नहीं है
  
जनाजे को मेरे लिए चलने वाले
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जीवन मेरा एक कहानी
जरा देख लूँ अपने घर को ठहर जा
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जिसका कुछ उनवान नहीं है
  
कोई डेंगू, ड्रोप्सी को कोई दिखाता
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खून हुआ सब चुप हैं वैसे
मेरे आका इससे भी आगे तू कर जा
+
कातिल पर अनजान नहीं है
  
है सरकार में सरसों में भी मिलावट
+
जब तक चाहो सुख से रह लो
जो जीना यहाँ है तो जी वरना मर जा
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दिल, है अफगानिस्तान नहीं है
  
सभी की निगाहें तुम्हीं पर कड़ी हैं
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मारोगे तो रोएगा ही
बहुत रात बीती अमरेन्दर तू घर जा।
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अमरेन्दर भगवान नहीं है।
 
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00:03, 26 जून 2017 के समय का अवतरण

गजल कहो आसान नहीं है
लेकिन यह वरदान नहीं है

गजल बयां की बारीकी है
रुक्नों का अरकान नहीं है

अपना दुख तो कलियुग जैसा
दो दिन का मेहमान नहीं है

जीवन मेरा एक कहानी
जिसका कुछ उनवान नहीं है

खून हुआ सब चुप हैं वैसे
कातिल पर अनजान नहीं है

जब तक चाहो सुख से रह लो
दिल, है अफगानिस्तान नहीं है

मारोगे तो रोएगा ही
अमरेन्दर भगवान नहीं है।