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"कुमार मुकुल" के अवतरणों में अंतर

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(New page: वॉन गॉग की उर्सुला - कुमार मुकुल क्‍या हर प्‍यार करने वाले से शादी करनी ...)
 
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वॉन गॉग की उर्सुला - कुमार मुकुल  
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{{KKGlobal}}
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== कुमार मुकुल की रचनाएँ==
  
क्‍या
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{{KKParichay
हर प्‍यार करने वाले से
+
|चित्र=
शादी करनी होगी मुझे
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|नाम=कुमार मुकुल
पूछती है - उर्सुला
+
|उपनाम=
और भाग खड़ी होती है
+
|जन्म=
विन्‍सेंट को पुकारती
+
|जन्मस्थान=
लाल सिर वाला बेवकूफ
+
|कृतियाँ=
 
+
|विविध=
सुबहें होती आई हैं
+
|सम्पर्क=
शबनम से नम
+
|जीवनी=[[कुमार मुकुल / परिचय]]
और आग से भरी हुईं
+
}}
हमेशा से
+
* [[वॉन गॉग की उर्सुला / कुमार मुकुल]]
और शामें
+
* [[ / कुमार मुकुल]]
उदास-खूबसूरत
+
* [[ / कुमार मुकुल]]
 
+
गुलाम हो चुकी भाषा के व्‍याकरण को
+
अपनी बेहिसाब जिरहों से लाजवाब करता
+
मिटटी की परतें तोड़
+
फेंकता अंकुर आजाद
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कि खब्‍तख्‍याली के
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टकटकी बांधता,खिलखिलाता,भागता
+
बदहवास
+
बिखरती लटें संवारता, चुंबनों से
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दुपट्टों से पसीना पोंछता
+
आता है प्‍यार -
+
चूजे सा पर तोलता
+
भरता आशंकाओं से
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कि उसकी रक्षा या हत्‍या को
+
आतुर हो उठते हम
+
कि बाज-बखत
+
खड़ी करनी चाहते दीवार
+
उसे बचाने की
+
दुनियावी जद्दो-जहद से
+
इससे गाफिल कि वह खुद
+
एक बुलन्‍द निगाह है -
+
दरो-दीवार को भेदती - फिर
+
अन्‍तत: चूककर
+
दुहराते हैं हम - प्‍यार
+
और दुश्‍वार करते हैं जीना
+
और टूटता है एक सपना
+
नींद में जागे का।
+
 
+
हर विंसेंट की
+
एक उर्सुला होती है
+
उसे दीवाना-मूंहफट-सिरफिरा कह
+
उसके मुंह पर किवाड़ भेड़ती
+
और होता है वह
+
एक विन्‍सेंट ही
+
ख्‍याल को सनम समझता
+
खुद को
+
ख्‍याल से भी कम समझता
+
प्रतीज्ञाएं करता-तोडता
+
महान मूर्खताओं से चिढता-चिढाता उन्‍हें मुंह
+
भटकाता खुद को दर-ब-दर
+
 
+
रहने और खाने की व्‍यवस्‍था पर
+
अध्‍यापक मिल जाते हैं हमेशा से
+
और आज भी
+
फिर क्‍या चाहिए था विन्‍सेंट को
+
याद करने के पैसे तो नहीं लगते
+
 
+
यादें तो बस
+
जीवन मांगती हैं
+
एक निगाह में
+
एक बैठती आह में
+
बिखरता जीवन।
+
 
+
इजाडोरा कहती है -
+
प्रेम
+
शरीर की नहीं
+
आत्‍मा की बीमारी है
+
यह ज्‍वर
+
जला डालता है सारे कलुष
+
प्रेमी बन जाते हैं
+
योद्धा-पादरी-शिक्षक
+
यह ज्‍वर भर जाता है
+
आंखों में चमक
+
भाषा में खुनक
+
फिर तमाम विन्‍सेंटों के भीतर
+
उनकी उर्सुलाएं जाग पड़ती हैं
+
बोलने लगते हैं वो
+
महान प्रार्थनाएं-प्रयाण गीत-पाठ
+
 
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दुनिया के क्रूरतम तानाशाह भी
+
अपने भीतर समेटते रहते हैं
+
एक बिखरती उर्सुला
+
 
+
कभी-कभी ज्‍वर टूटता है
+
तब तक देर हो चुकी होती है
+
सच्‍ची जिदें
+
बदल चुकी हेाती हैं
+
झूटी सनकों में
+
 
+
उर्सुला केा बचाने की जिद में वो
+
मार चुके हेाते हैं
+
अपने अंदर की उर्सुला को ही
+
 
+
जीवनानंद में नाचती
+
नीली आंखों का प्रकाश थी उर्सुला
+
विन्‍सेंट के लिए
+
उन कुछेक शामों-सुबहों की तरह
+
जो होते-बीतते
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बैठ जाती हैं चुपके से भीतर
+
फिर जब दुनिया का मायावी प्रकाश
+
चौंधियाता है हमें
+
तो खो जाते हैं हम
+
कहीं भीतर दुबके
+
प्रकाश-पल की तलाश में
+
टिमटिमाता रहता है जो-अविच्छिन्‍न
+
एक टीस की तरह
+
कि उन प्रकाश पलों को फिर-फिर
+
बदला नहीं जा सकता
+
सुबहों व शामों के प्रकाश-वृत्‍तों में
+
 
+
विन्‍सेंट याद करता है-ईसा को
+
कि-हरेक चीज मिल जाती है
+
किसी भी किताब से
+
ज्‍यादा सम्‍पूर्ण और सुन्‍दर रूप में
+
 
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कि कोर्इ भी दुख
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बिना उम्‍मीद के नहीं आता
+
 
+
हां
+
सचमुच की उर्सुला जब
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खो जाती है कहीं
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जिन्‍दगी की किताब में
+
तब
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जीवित होने लगती है वह
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विन्‍सेंट के लहू में-
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निगाह में उसकी
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उसके इशारों में-
+
फिर-फिर
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रची जा रही होती है वह कैनवसों पर
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मिथ्‍या आवरणेां के भीतर
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अपने मूल से भी
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खरे रूप में।
+

10:02, 15 जून 2008 का अवतरण

कुमार मुकुल की रचनाएँ

कुमार मुकुल
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निधन
उपनाम
जन्म स्थान
कुछ प्रमुख कृतियाँ
विविध
जीवन परिचय
कुमार मुकुल / परिचय
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