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"किसी का यूं तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी / फ़िराक़ गोरखपुरी" के अवतरणों में अंतर
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हजार बार ज़माना इधर से गुजरा | हजार बार ज़माना इधर से गुजरा | ||
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नई नई है मगर कुछ तेरी रहगुज़र फिर भी | नई नई है मगर कुछ तेरी रहगुज़र फिर भी | ||
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खुशा इशारा-ए-पैहम, जेह-ए-सुकूत नज़र | खुशा इशारा-ए-पैहम, जेह-ए-सुकूत नज़र | ||
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दराज़ होके फ़साना है मुख्तसर फिर भी | दराज़ होके फ़साना है मुख्तसर फिर भी | ||
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झपक रही हैं ज़मान-ओ-मकाँ की भी आँखें | झपक रही हैं ज़मान-ओ-मकाँ की भी आँखें | ||
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मगर है काफ्ला आमादा-ए-सफर फिर भी | मगर है काफ्ला आमादा-ए-सफर फिर भी | ||
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पलट रहे हैं गरीबुल वतन, पलटना था | पलट रहे हैं गरीबुल वतन, पलटना था | ||
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वोः कूचा रूकश-ए-जन्नत हो, घर है घर, फिर भी | वोः कूचा रूकश-ए-जन्नत हो, घर है घर, फिर भी | ||
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तेरी निगाह से बचने मैं उम्र गुजरी है | तेरी निगाह से बचने मैं उम्र गुजरी है | ||
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उतर गया रग-ए-जान मैं ये नश्तर फिर भी | उतर गया रग-ए-जान मैं ये नश्तर फिर भी |
18:16, 19 जून 2008 का अवतरण
किसी का यूं तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी
ये हुस्न-ओ-इश्क़ तो धोका है सब, मगर फिर भी
हजार बार ज़माना इधर से गुजरा
नई नई है मगर कुछ तेरी रहगुज़र फिर भी
खुशा इशारा-ए-पैहम, जेह-ए-सुकूत नज़र
दराज़ होके फ़साना है मुख्तसर फिर भी
झपक रही हैं ज़मान-ओ-मकाँ की भी आँखें
मगर है काफ्ला आमादा-ए-सफर फिर भी
पलट रहे हैं गरीबुल वतन, पलटना था
वोः कूचा रूकश-ए-जन्नत हो, घर है घर, फिर भी
तेरी निगाह से बचने मैं उम्र गुजरी है
उतर गया रग-ए-जान मैं ये नश्तर फिर भी