भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हमरो सलाम लिहीं जी / विजेन्द्र अनिल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजेन्द्र अनिल |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
पंक्ति 24: पंक्ति 24:
 
ई ह गांधी जी के देस, रउआ होई ना कलेस
 
ई ह गांधी जी के देस, रउआ होई ना कलेस
 
केहू कांपता त कांपे, रउआ घाम लिहीं जी।
 
केहू कांपता त कांपे, रउआ घाम लिहीं जी।
 +
 +
'''रचनाकाल : 24. 1. 1978'''
 
</poem>
 
</poem>

16:23, 13 सितम्बर 2017 का अवतरण

संउसे देसवा मजूर, रवा काम लिहीं जी
रउआ नेता हईं, हमरो सलाम लिहीं जी।

रउआ गद्दावाली कुरूसी प बइठल रहीं
जनता भेंड़-बकरी ह, ओकर चाम लिहीं जी।

रउआ पटना भा दिल्ली बिरजले रहीं
केहू मरे, रउआ रामजी के नाम लिहीं जी।

चाहे महंगी बढ़े, चाहे लड़े रेलिया
रउआ होटल में छोकरियन से जाम लिहीं जी।

केहू कछुओ कहे त मंहटिउवले रहीं
रउआ पिछली दुअरिया से दाम लिहीं जी।

ई ह गांधी जी के देस, रउआ होई ना कलेस
केहू कांपता त कांपे, रउआ घाम लिहीं जी।

रचनाकाल : 24. 1. 1978