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"आलाप में गिरह (कविता) / गीत चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर
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19:56, 20 जून 2008 का अवतरण
जाने कितनी बार टूटी लय
जाने कितनी बार जोड़े सुर
हर आलाप में गिरह पड़ी है
कभी दौड़ पड़े तो थकान नहीं
और कभी बैठे-बैठे ही टप् से गिर पड़े
मुक़ाबले में इस तरह उतरे कि उसे दया आ गई
और उसने ख़ुद को ख़ारिज कर लिया
थोड़ी-सी हँसी चुराई
सबने कहा छोड़ो भी
और हमने छोड़ दिया