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फुटकर श्लोक / गुमानी पन्त
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[एक]
आटाका अणचा लिया खसखसा रोटा बडा बाकला
भवजलनिधिमेनं हेरि ढेरै म डर्छू
सपदि कुरू तथा त्वं जौन् विगी पार तर्छू ।।
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