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"गाओ दुख का महागीत/ ब्रजमोहन" के अवतरणों में अंतर
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ओ जन-जन की पीड़ा मिलकर गाओ दुख का महागीत... | ओ जन-जन की पीड़ा मिलकर गाओ दुख का महागीत... | ||
− | + | अम्बर ढहकर गिर जाए तुम्हारे पाँव में | |
− | + | जल जाए झुलसकर धूप तुम्हारी छाँव में | |
− | + | अपनी गरमी से भर जाए तुमको सूरज | |
जलने दो लाखों दिये दिलों के, रात्रि हो भयभीत... | जलने दो लाखों दिये दिलों के, रात्रि हो भयभीत... | ||
− | + | लहराए उफ़नकर नदी रक्त की लहराए | |
− | + | गाए श्रम के ओंठों पर जीवन मुस्काए | |
− | + | उड़ने दो स्वर को आसमान छूने दो | |
हर दिशा गूँजने लगे, खाए पलटा अतीत... | हर दिशा गूँजने लगे, खाए पलटा अतीत... | ||
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13:28, 16 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण
ओ जन-जन की पीड़ा मिलकर गाओ दुख का महागीत...
अम्बर ढहकर गिर जाए तुम्हारे पाँव में
जल जाए झुलसकर धूप तुम्हारी छाँव में
अपनी गरमी से भर जाए तुमको सूरज
जलने दो लाखों दिये दिलों के, रात्रि हो भयभीत...
लहराए उफ़नकर नदी रक्त की लहराए
गाए श्रम के ओंठों पर जीवन मुस्काए
उड़ने दो स्वर को आसमान छूने दो
हर दिशा गूँजने लगे, खाए पलटा अतीत...