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"लड़ते हुए सिपाही का गीत / ब्रजमोहन" के अवतरणों में अंतर

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लड़ते हुए सिपाही का गीत बनो रे
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लड़ते हुए सिपाही का गीत बनो रे  
हारना है मौत, तुम जीत बनो रे
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हारना है मौत तुम जीत बनो रे ...
  
फूलों से खिलना सीखो, पंछी से उड़ना
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फूलों से खिलना सीखो, पँछी से उड़ना
पेड़ों की छाँव बनके धरती से जुड़ना
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पेड़ों की छाँव बनके, धरती से जुड़ना
पर्वत से सीखो, कैसे चोटी पर चढ़ना
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पर्वत से सीखो कैसे चोटी पे चढ़ना
गेहूँ के दानों-सी प्रीत बनो रे
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गेहूँ के दानों-सी प्रीत बनो रे ...
  
 
जब बैठे-बैठे आँखें भर आएँ दुख से
 
जब बैठे-बैठे आँखें भर आएँ दुख से
फिर सोचना, दिन कैसे बीतेंगे सुख से
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फिर सोचना दिन कैसे बीतेंगे सुख से
 
दुख की लकीरें मिट जाएँगी मुख से
 
दुख की लकीरें मिट जाएँगी मुख से
सूरज-सा उगने की रीत बनो रे
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सूरज-सा उगने की रीत बनो रे ...
  
माथे पर छलके भाई! जब भी पसीना
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माथे पे छलके भाई जब भी पसीना
इक पल हवाओं के भी होठों पर जीना
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इक पल हवाओं के भी ओठों पर जीना
तब देखना रे ! कैसे फूलेगा सीना
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तब देखना रे कैसे फूलेगा सीना
सीने में धड़के जो, संगीत बनो रे
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सीने में धड़के जो संगीत बनो रे ...
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पाप का घड़ा तो आख़िर फूटेगा भाई
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पापी किस-किस से फिर छूटेगा भाई
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कोई लुटेरा कब तक लूटेगा भाई
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ख़ून-पसीने के मीत बनो रे ...
 
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23:00, 22 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण

लड़ते हुए सिपाही का गीत बनो रे
हारना है मौत तुम जीत बनो रे ...

फूलों से खिलना सीखो, पँछी से उड़ना
पेड़ों की छाँव बनके, धरती से जुड़ना
पर्वत से सीखो कैसे चोटी पे चढ़ना
गेहूँ के दानों-सी प्रीत बनो रे ...

जब बैठे-बैठे आँखें भर आएँ दुख से
फिर सोचना दिन कैसे बीतेंगे सुख से
दुख की लकीरें मिट जाएँगी मुख से
सूरज-सा उगने की रीत बनो रे ...

माथे पे छलके भाई जब भी पसीना
इक पल हवाओं के भी ओठों पर जीना
तब देखना रे कैसे फूलेगा सीना
सीने में धड़के जो संगीत बनो रे ...

पाप का घड़ा तो आख़िर फूटेगा भाई
पापी किस-किस से फिर छूटेगा भाई
कोई लुटेरा कब तक लूटेगा भाई
ख़ून-पसीने के मीत बनो रे ...