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तुम्हें इतनी देर क्यों हो गई? | तुम्हें इतनी देर क्यों हो गई? | ||
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− | '''अनुवाद : मनोज पटेल''' | + | '''अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल''' |
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21:18, 4 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
धीरे-धीरे छोटे होते जा रहे हैं दिन,
आने वाला है बरसात का मौसम.
मेरा खुला दरवाज़ा इन्तज़ार करता रहा तुम्हारा.
तुम्हें इतनी देर क्यों हो गई?
मेरी मेज़ पर धरी रह गई ब्रेड, नमक, और एक हरी मिर्च.
तुम्हारा इन्तज़ार करते हुए
अकेला ही पीता रहा मैं
और रख लिया आधी शराब बचाकर तुम्हारे लिए.
तुम्हें इतनी देर क्यों हो गई?
मगर देखो, शहद से भरा हुआ फल,
पककर डाली पर लगा है अभी.
अगर और देर हो गई होती तुम्हें
अपने आप ही गिर गया होता वह ज़मीन पर.
अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल