"गिरती हुई पत्तियाँ / नाज़िम हिक़मत" के अवतरणों में अंतर
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नाज़िम हिक़मत |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=नाज़िम हिक़मत | |रचनाकार=नाज़िम हिक़मत | ||
− | |अनुवादक= | + | |अनुवादक=मनोज पटेल |
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
}} | }} | ||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
[[Category:तुर्की भाषा]] | [[Category:तुर्की भाषा]] | ||
<poem> | <poem> | ||
− | पचासों | + | पचासों हज़ार उपन्यासों और कविताओं में पढ़ा है |
गिरती हुई पत्तियों के बारे में | गिरती हुई पत्तियों के बारे में | ||
− | पचासों | + | पचासों हज़ार फ़िल्मों में देखा है पत्तियों को गिरते हुए |
− | पचासों | + | पचासों हज़ार बार गिरते देखा है पत्तियों को |
गिरते, उड़ते और सड़ते | गिरते, उड़ते और सड़ते | ||
− | पचासों | + | पचासों हज़ार बार महसूस किया है उनकी बेजान शुश-शुश की आवाज़ |
अपने क़दमों के नीचे, अपने हाथों और उँगलियों के पोरों पर | अपने क़दमों के नीचे, अपने हाथों और उँगलियों के पोरों पर | ||
मगर अब भी मैं अभिभूत हो जाता हूँ गिरती हुई पत्तियाँ देखकर | मगर अब भी मैं अभिभूत हो जाता हूँ गिरती हुई पत्तियाँ देखकर | ||
− | + | ख़ासकर सड़क पर गिरती हुई पत्तियाँ | |
− | + | ख़ासकर शाहबलूत की पत्तियाँ | |
और अगर आस-पास हों बच्चे | और अगर आस-पास हों बच्चे | ||
अगर निकली हो धूप | अगर निकली हो धूप | ||
− | और कोई अच्छी | + | और कोई अच्छी ख़बर मिली हो मुझे दोस्ती के बारे में |
− | + | ख़ासकर अगर दर्द न हो मेरे सीने में | |
और भरोसा हो कि मुझे चाहता है मेरा प्यार | और भरोसा हो कि मुझे चाहता है मेरा प्यार | ||
खासकर ऐसे दिन जब मैं बेहतर महसूस करता होऊँ लोगों के बारे में | खासकर ऐसे दिन जब मैं बेहतर महसूस करता होऊँ लोगों के बारे में | ||
मैं अभिभूत हो जाता हूँ गिरती हुई पत्तियाँ देखकर | मैं अभिभूत हो जाता हूँ गिरती हुई पत्तियाँ देखकर | ||
− | + | ख़ासकर सड़क पर गिरती हुई पत्तियाँ | |
− | + | ख़ासकर शाहबलूत की पत्तियाँ | |
६ सितम्बर, १९६१ | ६ सितम्बर, १९६१ | ||
लीपजिग | लीपजिग | ||
− | '''अनुवाद : मनोज पटेल''' | + | '''अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल''' |
</poem> | </poem> |
21:21, 4 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
पचासों हज़ार उपन्यासों और कविताओं में पढ़ा है
गिरती हुई पत्तियों के बारे में
पचासों हज़ार फ़िल्मों में देखा है पत्तियों को गिरते हुए
पचासों हज़ार बार गिरते देखा है पत्तियों को
गिरते, उड़ते और सड़ते
पचासों हज़ार बार महसूस किया है उनकी बेजान शुश-शुश की आवाज़
अपने क़दमों के नीचे, अपने हाथों और उँगलियों के पोरों पर
मगर अब भी मैं अभिभूत हो जाता हूँ गिरती हुई पत्तियाँ देखकर
ख़ासकर सड़क पर गिरती हुई पत्तियाँ
ख़ासकर शाहबलूत की पत्तियाँ
और अगर आस-पास हों बच्चे
अगर निकली हो धूप
और कोई अच्छी ख़बर मिली हो मुझे दोस्ती के बारे में
ख़ासकर अगर दर्द न हो मेरे सीने में
और भरोसा हो कि मुझे चाहता है मेरा प्यार
खासकर ऐसे दिन जब मैं बेहतर महसूस करता होऊँ लोगों के बारे में
मैं अभिभूत हो जाता हूँ गिरती हुई पत्तियाँ देखकर
ख़ासकर सड़क पर गिरती हुई पत्तियाँ
ख़ासकर शाहबलूत की पत्तियाँ
६ सितम्बर, १९६१
लीपजिग
अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल