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"पहली फुहार / राजीव रंजन" के अवतरणों में अंतर

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की नयी परिभाशा
 
की नयी परिभाशा
 
सूखे प्यार में लौटी फिर से बहार।
 
सूखे प्यार में लौटी फिर से बहार।
बरस रहे बदरा
 
गर्मी से आकुल तन-मन को,
 
त्राण देते बरस रहे बदरा।
 
मर रही प्यासी धरती को,
 
प्राण देते बरस रहे बदरा।
 
घायल सपने
 
बरस रहा आज झमाझम देखो कैसे बादल।
 
हर्शित धरती की आज बज रही देखों कैसे पायल।
 
उम्मीदों के अद्धन में कैसे पक रहा खुशियों का चावल।
 
लेकिन फरेबी हवाओं से आज भी सपने हो रहे कैसे घायल।
 
 
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14:34, 9 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

सूखे तन-मन को हरा-भरा करती
आयी बारिश की पहली फुहार।
फिजाओं में फिर गुँजा जीवन-राग
हवाएँ भी गाने लगी राग-मल्हार।
बादल और धरती ने गढ़ी संबंधों
की नयी परिभाशा
सूखे प्यार में लौटी फिर से बहार।