भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मैं इस उम्मीद पे डूबा कि तू बचा लेगा / वसीम बरेलवी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वसीम बरेलवी }} Category:गज़ल मैं इस उम्मीद पे डूबा कि तू बचा...) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 18: | पंक्ति 18: | ||
मैं उसका हो नहीं सकता बता न देना उसे<br> | मैं उसका हो नहीं सकता बता न देना उसे<br> | ||
− | सुनेगा तो लकीरें हाथ की अपनी वो सब जला लेगा | + | सुनेगा तो लकीरें हाथ की अपनी वो सब जला लेगा<br><br> |
− | हज़ार तोड़ के आ जाऊं उस से रिश्ता वसीम | + | हज़ार तोड़ के आ जाऊं उस से रिश्ता वसीम<br> |
मैं जानता हूँ वो जब चाहेगा बुला लेगा | मैं जानता हूँ वो जब चाहेगा बुला लेगा |
18:52, 24 जून 2008 का अवतरण
मैं इस उम्मीद पे डूबा कि तू बचा लेगा
अब इसके बाद मेरा इम्तेहान क्या लेगा
यह एक मेला है वादा किसी से क्या लेगा
ढलेगा दिन तो हर एक अपना रास्ता लेगा
मैं बुझ गया तो हमेशा को बुझ ही जाऊँगा
कोई चिराग नहीं हूँ जो फिर जला लेगा
कलेजा चाहिए दुश्मन से दुश्मनी के लिए
जो बे-अमल है वो बदला किसी से क्या लेगा
मैं उसका हो नहीं सकता बता न देना उसे
सुनेगा तो लकीरें हाथ की अपनी वो सब जला लेगा
हज़ार तोड़ के आ जाऊं उस से रिश्ता वसीम
मैं जानता हूँ वो जब चाहेगा बुला लेगा