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"सन्देश अभय का / अर्चना कुमारी" के अवतरणों में अंतर
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नींद तब चबाती है निर्भयता | नींद तब चबाती है निर्भयता |
13:19, 11 दिसम्बर 2017 के समय का अवतरण
जब भी कोई
पीठ कर देता है चेहरे के सामने
डर लगता है
करवट बदल कर सो जाना किसी का
नींद तब चबाती है निर्भयता
औपचारिकताओं की चहलकदमी
फासले कम नहीं करती
दूरियां बड़बड़ाती हैं
नींद में चलते हुए
सब कुछ पहले जैसा हो जाना
गांठों के बाद
कितनी तहों का कारीगर
पीछे पलट कर देखने पर
परछाईंयां के सांप
न पांव धरने देतीं, न मुक्त ही करतीं
पलक की पिटारी खुलते ही
थोड़ी ताजा हवा आती है
आशाओं के देश से
संदेश लेकर अभय का।