भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तुम बादल बन / सैयद शहरोज़ क़मर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
					
										
					
					अनिल जनविजय  (चर्चा | योगदान)  ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= सैयद शहरोज़ क़मर |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)  | 
				अनिल जनविजय  (चर्चा | योगदान)   | 
				||
| पंक्ति 15: | पंक्ति 15: | ||
विवशता है  | विवशता है  | ||
इसे    | इसे    | ||
| − | नपुंसकता भी    | + | नपुंसकता से भी    | 
कह सकते हैं।  | कह सकते हैं।  | ||
04.07.97  | 04.07.97  | ||
</poem>  | </poem>  | ||
13:43, 27 दिसम्बर 2017 का अवतरण
तुम बादल बन्बरसोगे
भले वर्षा
तेज़ाबी हो
स्वीकार्य है हमें
ये परिस्थितिजन्य 
विवशता है
इसे 
नपुंसकता से भी 
कह सकते हैं।
04.07.97
	
	