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"अश्रु कणिका / कैलाश पण्डा" के अवतरणों में अंतर
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− | + | बिम्ब लिये चरसे | |
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− | + | तापित ह्रदय से | |
− | + | मानो बूंद-बूंद घट से | |
− | + | चेतना के चिर शिखर पर | |
− | + | संवेदना की संवाहिका बन | |
− | + | बहती हो | |
− | + | तुम कब पाहन से निकसी | |
− | + | गरलराज संग राची | |
− | + | हो मेघों का गर्जन जब | |
− | + | तब पृथ्वी के तृण-तृण का सृजन। | |
− | + | हरियाली मंडाराती | |
− | + | मूक नहीं कोयल रह पाती | |
− | + | मयूरा नित्य राग आलपे | |
+ | नूत्य नूतन कर पाते | ||
+ | सुख गागर भी तब सागर बन जाते | ||
+ | अश्रुकणिका पाया तुम से स्नेह अपार। | ||
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15:35, 27 दिसम्बर 2017 के समय का अवतरण
अश्रु कणिका
तुम हर्षित मन से
भाव सुनहले
स्वर्णिम कण से
अनगिनत गहरे
बिम्ब लिये चरसे
गिरती हो !
तापित ह्रदय से
मानो बूंद-बूंद घट से
चेतना के चिर शिखर पर
संवेदना की संवाहिका बन
बहती हो
तुम कब पाहन से निकसी
गरलराज संग राची
हो मेघों का गर्जन जब
तब पृथ्वी के तृण-तृण का सृजन।
हरियाली मंडाराती
मूक नहीं कोयल रह पाती
मयूरा नित्य राग आलपे
नूत्य नूतन कर पाते
सुख गागर भी तब सागर बन जाते
अश्रुकणिका पाया तुम से स्नेह अपार।