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"कविता मेरी/ ज्योत्स्ना शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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जीवन -गीत गाया
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भोर द्वारे सजाए
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तारक आशा के हैं
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चाँद आये न आए ।
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सूरज कहे
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ऐसा कर दिखाओ
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व्याकुल -मना
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वीथियाँ हों व्यथित
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कभी तुम ना आओ ।
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कविता मेरी
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बस तेरा वन्दन
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तप्त पन्थ हों
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तप्त पथिक मन
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मैं मृण्मयी हूँ
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नेह से गूँथ कर
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तुमने रचा
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अपना या पराया
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अब क्या मेरा बचा
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तुम भी जानो
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ईर्ष्या विष की ज्वाला
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फिर क्यूँ भला
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नफ़रत को पाला
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प्यार को न सँभाला
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81
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चाहें न चाहें
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हम कहें न कहें
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नियति -नटी
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बस यूँ ही नचाए
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रंग सारे दिखाए ।
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नैनों में नींद
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मैं समझ जाती हूँ
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सुख है यहाँ
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धीरज और धर्म
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फिर जायेगा कहाँ
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सुख तो आते
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संग-संग गठरी
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दुःखों की लाते
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मै खुलने न दूँगी
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बिखरने भी नहीं ।             
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कान्हा मैं खेलूँ
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एक शर्त हमारी
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जीतूँ तो 'मेरे'
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और जो हार जाऊँ ?
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तो मैं सारी तुम्हारी ।
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17:01, 7 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण


73
सागर तुम
उसमें प्रीत थोडी़
मेरी मिलाओ
चलो इस धरा को
मधुमय बनाओ ।
74
काँकर हुई
नींव में आज डालो
इन्सानियत
ऊपर भी उठा लो
तुम जगमगा लो ।
75
फूलों से सुना
कलियों को बताया
मैंने भी यहाँ
जीवन -गीत गाया
प्रत्यहं दोहराया ।
76
निशा ने कहा
भोर द्वारे सजाए
निराशा नहीं
तारक आशा के हैं
चाँद आये न आए ।
77
सूरज कहे
ऐसा कर दिखाओ
व्याकुल -मना
वीथियाँ हों व्यथित
कभी तुम ना आओ ।
78
कविता मेरी
बस तेरा वन्दन
तप्त पन्थ हों
तप्त पथिक मन
सुखदायी चन्दन
79
मैं मृण्मयी हूँ
नेह से गूँथ कर
तुमने रचा
अपना या पराया
अब क्या मेरा बचा
80
तुम भी जानो
ईर्ष्या विष की ज्वाला
फिर क्यूँ भला
नफ़रत को पाला
प्यार को न सँभाला
81
चाहें न चाहें
हम कहें न कहें
नियति -नटी
बस यूँ ही नचाए
रंग सारे दिखाए ।
82
नैनों में नींद
मैं समझ जाती हूँ
सुख है यहाँ
धीरज और धर्म
फिर जायेगा कहाँ
83
सुख तो आते
संग-संग गठरी
दुःखों की लाते
मै खुलने न दूँगी
बिखरने भी नहीं ।
84
कान्हा मैं खेलूँ
एक शर्त हमारी
जीतूँ तो 'मेरे'
और जो हार जाऊँ ?
तो मैं सारी तुम्हारी ।
-0-