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"बादल रोया (हाइकु) / जगदीश व्योम" के अवतरणों में अंतर
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बादल रोया | बादल रोया | ||
धरती भी उमगी | धरती भी उमगी | ||
फसल उगी। | फसल उगी। | ||
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| + | क्यों तू उदास | ||
| + | दूब अभी है ज़िंदा | ||
| + | पिक कूकेगा। | ||
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| + | इर्द गिर्द हैं | ||
| + | साँसों की ये मशीने | ||
| + | इंसान कहाँ ! | ||
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| + | कुछ कम हो | ||
| + | शायद ये कुहासा | ||
| + | यही प्रत्याशा । | ||
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| + | सहम गई | ||
| + | फुदकती गौरैया | ||
| + | शुभ नहीं ये। | ||
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| + | धूप के पाँव | ||
| + | थके अनमने से | ||
| + | बैठे सहमे। | ||
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| + | लोक रोपता | ||
| + | महाकाव्य की पौध | ||
| + | लुनता कवि। | ||
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| + | स्वागत हुआ | ||
| + | दूब-धान है आया | ||
| + | लोक जीवन । | ||
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| + | मरने न दो | ||
| + | परंपराएँ कभी | ||
| + | बचोगे तभी। | ||
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18:27, 9 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण
1
बादल रोया
धरती भी उमगी
फसल उगी।
2
क्यों तू उदास
दूब अभी है ज़िंदा
पिक कूकेगा।
3
इर्द गिर्द हैं
साँसों की ये मशीने
इंसान कहाँ !
4
कुछ कम हो
शायद ये कुहासा
यही प्रत्याशा ।
5
सहम गई
फुदकती गौरैया
शुभ नहीं ये।
6
धूप के पाँव
थके अनमने से
बैठे सहमे।
7
लोक रोपता
महाकाव्य की पौध
लुनता कवि।
8
स्वागत हुआ
दूब-धान है आया
लोक जीवन ।
9
मरने न दो
परंपराएँ कभी
बचोगे तभी।
