भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हमने लिखा / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
[[Category: चोका]] | [[Category: चोका]] | ||
<poem> | <poem> | ||
− | |||
हमने लिखा- | हमने लिखा- | ||
चिड़िया उड़ो तुम | चिड़िया उड़ो तुम | ||
पंक्ति 36: | पंक्ति 35: | ||
होकर भयभीत । | होकर भयभीत । | ||
-0- | -0- | ||
− | |||
</poem> | </poem> |
22:06, 10 फ़रवरी 2018 का अवतरण
हमने लिखा-
चिड़िया उड़ो तुम
तोड़ पिंजरा
नाप लो ये गगन
छू लो क्षितिज !
पार न कर सके
लेकिन हम
अपना ही आँगन ।
लाखों बातें कीं
तोड़कर पहाड़
नदी लाने की,
तोड़ न सके कभी
जर्जर ताला
सदियों से था जड़ा
रूढ़ियों पर,
हमारी सोच पर
डरता मन ;
टूट न जाए कहीं
ये घुन-खाया
दरवाज़ा पल में
जो छुपाए है
कमज़ोर हाथों को-
उन हाथों को
जो कभी नहीं बढ़े
मुक्ति पाने को
पिंजरों में बन्द ही
लिखते रहे
सदा मुक्ति का गीत
होकर भयभीत ।
-0-