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"अधरों पर / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

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पतझर
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ऊपर से आँधी
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पकड़ो न पात
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बचा ठूँठ
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बाहों में भर लो,
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तो फूटेंगे कोंपल।
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करके सारी निर्मलता
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तुझको अर्पण
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लो बाकी सब रिश्तों का
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कर दिया तर्पण।
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बारूद का ढेर
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तानों के अग्निबाण
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झुलसे वे भी
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जला गए हमको।
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पग पग कीलें
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चले बचाकर
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खा गए ठोकर
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बिखरे क़तरे
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वे मुस्काए।
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अधरों पर
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मुस्कान तरल
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मन में द्वेष का कोलाहल
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बना गरल।
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वनखण्डों के पार
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पिंजरे में बंद
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प्रतीक्षारत
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व्याकुल सुग्गा
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कहीं वह तुम तो नहीं ?
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दिए रब ने
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सुनहरे अनगिन पल
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सँभाले न गए
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तो माटी हो गए।
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टूटती साँसें कि
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घायल डैने भी हुए
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पोर तेरे छू गए
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फिर से वसन्त आ गया
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स्पर्श तेरा  भा गया।
  
 
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17:52, 11 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण


15
पतझर
ऊपर से आँधी
पकड़ो न पात
बचा ठूँठ
बाहों में भर लो,
तो फूटेंगे कोंपल।
16
करके सारी निर्मलता
तुझको अर्पण
लो बाकी सब रिश्तों का
कर दिया तर्पण।
17
बारूद का ढेर
तानों के अग्निबाण
झुलसे वे भी
जला गए हमको।
18
पग पग कीलें
चले बचाकर
खा गए ठोकर
बिखरे क़तरे
वे मुस्काए।
19
अधरों पर
मुस्कान तरल
मन में द्वेष का कोलाहल
बना गरल।
20
वनखण्डों के पार
पिंजरे में बंद
प्रतीक्षारत
 व्याकुल सुग्गा
कहीं वह तुम तो नहीं ?
21
दिए रब ने
सुनहरे अनगिन पल
सँभाले न गए
तो माटी हो गए।
22
टूटती साँसें कि
घायल डैने भी हुए
पोर तेरे छू गए
फिर से वसन्त आ गया
स्पर्श तेरा भा गया।