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"बाल कविताएँ / भाग 2 / ज्योत्स्ना शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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11:27, 13 फ़रवरी 2018 का अवतरण

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बात बताओ

कैसे पहनोगे पाजामा।

आऊँगा मैं पास तुम्हारे,

फिर देखूँगा खूब नज़ारे।

कहाँ कातती बुढ़िया दादी,

पहने चमकीली-सी खादी।

तुम सूरज के छोटे भैया,

बहकाती थीं मुझको मैया।

मैंने उनको भेद बताया,

सूरज ने इनको चमकाया।


मंत्र समय का


श्रम से जीवन सफल बनाओ.

चुनकर लातीं तिनका-तिनका

नन्हीं चिड़ियें नीड़ बनातीं

फूल-कली से रस ले-ले कर

मधुमक्खियाँ घट भर लातीं

तुम भी अक्षर-अक्षर चुनकर

ज्ञान-सुधा-सागर बन जाओ.

कृषक खेत में बहा पसीना

सोने जैसी फसल उगाते

सर्दी, गरमी, बरखा सहते

तब जाकर मीठा फल पाते

काँटों में भी खिलो फूल से

खुद महको जग को महकाओ.

शीतल नदिया कल-कल करती

चट्टानों में भी बहती है

बाधाएँ आएँगी, बढ़ना

कभी न रुकना ही कहती है

पल-पल रहकर पल के प्रहरी

बढ़ो, सभी को साथ बढ़ाओ.

मंत्र समय का मान भी जाओ,

श्रम से जीवन सफल बनाओ॥


पहरेदार बनो!


घोर अँधेरी निशा घनेरी

इस जग के पहरेदार बनो।

तोड़ रहा दम आज उजाला

तुम नई किरण का द्वार बनो।

सभी सितारे अस्त गगन में

नभ का नूतन शृंगार बनो।

हिंसा, द्वेष, कलह पर फहरी

वर विजय-ध्वजा, उपहार बनो।

महक चुराने आया है जो

तुम उसको तीखा खार बनो।

लक्ष्य लेकर बहते नीर की

शीतल अति निर्मल धार बनो।


हम फूल हैं !

हम फूल हैं इस उपवन के

हम निर्मल कोमल मन के.

हम सबको लगते प्यारे

धरती के चाँद सितारे।

हर आँगन के उजियारे

हम घृणा द्वेष से न्यारे।

हम जन गन मन उद्गाता

भारत के भाग्य विधाता।

मत निरा बाल तुम जानों

बस वीर सिपाही मानों।

है शपथ तिरंगे हमको

झुकने ना देंगें तुमको।

हम हिंदू, सिख, ईसाई

मुस्लिम सब भाई-भाई.