"गुँथा मिलन कब / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
<poem> | <poem> | ||
− | '''क्षीण प्रतीक्षा के धागे ,अर्थहीन आशा के मोती | + | '''क्षीण प्रतीक्षा के धागे ,अर्थहीन आशा के मोती ।''' |
− | गुँथा मिलन कब हृदय सुचि से, टूटी अश्रुमाल पिरोती ॥''' | + | '''गुँथा मिलन कब हृदय सुचि से, टूटी अश्रुमाल पिरोती ॥''' |
शीतनिशा में हर पात झरा है | शीतनिशा में हर पात झरा है | ||
पीर का बिरवा भी हुआ हरा है । | पीर का बिरवा भी हुआ हरा है । | ||
पंक्ति 26: | पंक्ति 26: | ||
नवपुष्प खिले, भौरों के गुंजन | नवपुष्प खिले, भौरों के गुंजन | ||
सजेगा तुम संग विकसित यौवन॥ | सजेगा तुम संग विकसित यौवन॥ | ||
− | '''पथ में प्रिय पुष्प बिछाते, पर विरहन काँटों में सोती। | + | '''पथ में प्रिय पुष्प बिछाते, पर विरहन काँटों में सोती।''' |
− | गुँथा मिलन कब हृदय सुचि से,टूटी अश्रुमाल पिरोती॥ | + | '''गुँथा मिलन कब हृदय सुचि से,टूटी अश्रुमाल पिरोती॥''' |
− | ''' | + | |
</poem> | </poem> |
15:12, 22 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण
क्षीण प्रतीक्षा के धागे ,अर्थहीन आशा के मोती ।
गुँथा मिलन कब हृदय सुचि से, टूटी अश्रुमाल पिरोती ॥
शीतनिशा में हर पात झरा है
पीर का बिरवा भी हुआ हरा है ।
मन-आँगन में घना अँधेरा है
यह आश्वासन से कब सँवरा है ॥
उपहास किया करते सब कि मैं केवल भार हूँ ढोती …
गुँथा मिलन कब हृदय सुचि से , टूटी अश्रुमाल पिरोती ।॥
थे उपहार लिये तुम हाथ खड़े
वंदनवार प्रिये उर- द्वार पड़े ।
कुछ बादल मन- नभ पर उमड़े
नहीं घटा अब कोई भी घुमड़े ॥
दावानल में लहराती बरसने का सभी सुख खोती।
गुँथा मिलन कब हृदय सुचि से ,टूटी अश्रुमाल पिरोती॥
कब आना होगा अब इस उपवन
उन्मुक्त लताओं का मैं मधुवन।
नवपुष्प खिले, भौरों के गुंजन
सजेगा तुम संग विकसित यौवन॥
पथ में प्रिय पुष्प बिछाते, पर विरहन काँटों में सोती।
गुँथा मिलन कब हृदय सुचि से,टूटी अश्रुमाल पिरोती॥