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"लुकमान अली-4 / सौमित्र मोहन" के अवतरणों में अंतर

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कसिंह   सेफ्टी पिन छाती के बालों में अटका कर वह अपने बटन खोलने लगता
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'''कसिंह'''  सेफ्टी पिन छाती के बालों में अटका कर  
            है। वह अपने काजों में गाजरें लगा लेता है। पैरों में खड़ाऊँ। महेश योगी
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              वह अपने बटन खोलने लगता है। वह अपने  
            या ऐसे ही किसी ढोंगी का ध्यान करते हुए वह गाँजा पीने लगता
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              काजों में गाजरें लगा लेता है। पैरों में खड़ाऊँ।  
            है।
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              महेश योगीया ऐसे ही किसी ढोंगी का ध्यान  
खसिंह  वह बाँसों में कीड़े खोजता हुआ बिहार में देखा गया था।
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              करते हुए वह गाँजा पीने लगता है।
गसिंह    वह राजकमल चौधरी का दोस्त था लेकिन उसे महसूस नहीं करता
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            था। वह विसंगति के नाटक में अकेला था। वह भाले उठाता-उठाता
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            हाँफ जाता था। उसे बलराज पंडित का नाम ठीक तब भूल जाता जब
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            वह उससे बातें कर रहा होता था।
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कसिंह    वह बौनेपन का झूठ ओढ़े हुए है। मैंने उसे एक रात 6'5" ऊँचा देखा
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            था।
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गसिंह  वह मनोवैज्ञानिक केस है।
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चसिंह  उसका असली नाम कुछ और है। वह हाथी की लीद है।
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खसिंह  वह दम के चित्रों में खुद को खोजता है। वह जिन चीजों के संपर्क में
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            आता है वे गलने लगतीं हैं। हमदम के चित्र प्लास्टिक के नहीं हैं कि
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            कोई आकार ले लें। उसे अपने चित्रों को बचाकर रखना चाहिए।
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कसिंह  वह लोगों के सिरों में कीलें ठोंककर उनकी गिनती करता है । फिर
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            पतंग उड़ाकर डोर का सिरा कीलों में बाँध देता है । वह कंचन कुमार
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            को अपना निर्णायक बनाना चाहता है।
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लुकमान अली अपने इन मिथकों के बजाय उस भाषा को समझना चाहता है
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'''खसिंह'''  वह बाँसों में कीड़े खोजता हुआ बिहार में देखा
जो वह सोते-सोते बुड़बुड़ाता है । वह सोने और भाषा के बीच के पुल को
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                गया था।
अपनी कमर में लपेट कर संसद में कूद जाना चाहता है।
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'''गसिंह'''    वह राजकमल चौधरी का दोस्त था लेकिन उसे
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                महसूस नहीं करता था। वह विसंगति के नाटक
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                में अकेला था। वह भाले उठाता-उठाता हाँफ जाता
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                था। उसे बलराज पंडित का नाम ठीक तब भूल
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                जाता जब वह उससे बातें कर रहा होता था।
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'''कसिंह'''    वह बौनेपन का झूठ ओढ़े हुए है। मैंने उसे एक
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                रात 6'5" ऊँचा देखा था।
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'''गसिंह'''  वह मनोवैज्ञानिक केस है।
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'''चसिंह'''  उसका असली नाम कुछ और है। वह हाथी
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              की लीद है।
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'''खसिंह'''  वह दम के चित्रों में खुद को खोजता है। वह जिन
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              चीजों के संपर्क में आता है वे गलने लगतीं हैं।
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              हमदम के चित्र प्लास्टिक के नहीं हैं कि कोई आकार
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              ले लें। उसे अपने चित्रों को बचाकर रखना चाहिए।
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'''कसिंह'''  वह लोगों के सिरों में कीलें ठोंककर उनकी गिनती
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              करता है । फिर पतंग उड़ाकर डोर का सिरा कीलों में
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              बाँध देता है । वह कंचन कुमार को अपना निर्णायक
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              बनाना चाहता है।
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लुकमान अली अपने इन मिथकों के बजाय उस भाषा को समझना  
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चाहता है जो वह सोते-सोते बुड़बुड़ाता है । वह सोने और भाषा के बीच  
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के पुल को अपनी कमर में लपेट कर संसद में कूद जाना चाहता है।
 
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18:34, 24 मई 2018 के समय का अवतरण

कसिंह सेफ्टी पिन छाती के बालों में अटका कर
               वह अपने बटन खोलने लगता है। वह अपने
               काजों में गाजरें लगा लेता है। पैरों में खड़ाऊँ।
               महेश योगीया ऐसे ही किसी ढोंगी का ध्यान
               करते हुए वह गाँजा पीने लगता है।

खसिंह वह बाँसों में कीड़े खोजता हुआ बिहार में देखा
                गया था।

गसिंह वह राजकमल चौधरी का दोस्त था लेकिन उसे
                महसूस नहीं करता था। वह विसंगति के नाटक
                में अकेला था। वह भाले उठाता-उठाता हाँफ जाता
                था। उसे बलराज पंडित का नाम ठीक तब भूल
                जाता जब वह उससे बातें कर रहा होता था।

कसिंह वह बौनेपन का झूठ ओढ़े हुए है। मैंने उसे एक
                रात 6'5" ऊँचा देखा था।

गसिंह वह मनोवैज्ञानिक केस है।

चसिंह उसका असली नाम कुछ और है। वह हाथी
               की लीद है।

खसिंह वह दम के चित्रों में खुद को खोजता है। वह जिन
              चीजों के संपर्क में आता है वे गलने लगतीं हैं।
              हमदम के चित्र प्लास्टिक के नहीं हैं कि कोई आकार
              ले लें। उसे अपने चित्रों को बचाकर रखना चाहिए।

कसिंह वह लोगों के सिरों में कीलें ठोंककर उनकी गिनती
               करता है । फिर पतंग उड़ाकर डोर का सिरा कीलों में
               बाँध देता है । वह कंचन कुमार को अपना निर्णायक
               बनाना चाहता है।

लुकमान अली अपने इन मिथकों के बजाय उस भाषा को समझना
चाहता है जो वह सोते-सोते बुड़बुड़ाता है । वह सोने और भाषा के बीच
के पुल को अपनी कमर में लपेट कर संसद में कूद जाना चाहता है।