भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"और ही राग / अजित कुमार" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अजित कुमार }} टेबिल टाप पर तुम्हारी उँगलियाँ पड़ी हुई ...)
 
पंक्ति 30: पंक्ति 30:
 
एक और ही राग अलापती हुईं
 
एक और ही राग अलापती हुईं
  
जिसमें डूबती –डूबती मैं जा पहुँची अतल में ।
+
जिसमें डूबती–डूबती मैं जा पहुँची अतल में ।

23:31, 15 जुलाई 2008 का अवतरण

टेबिल टाप पर तुम्हारी उँगलियाँ

पड़ी हुई थीं निर्जीव

और मैं प्रतीक्षा में थी दम साधे

कि अब वे हरकत करेंगी-


धिनक धिनक धिन्... धिनक धिन्...

रच दोगे तुम एक अनोखा संगीत

जिसकी लय पर मैं थिरकने लगूंगी

धिनक धिनक्... धिन्... ता...


पर वे थीं कि हिले-डुले बिना

वैसी ही थमी रहीं उसी जगह अचल

गहरे मौन का या निष्प्रभ जीवन का

एक और ही राग अलापती हुईं

जिसमें डूबती–डूबती मैं जा पहुँची अतल में ।