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"मुक्तक-01 / रंजना वर्मा" के अवतरणों में अंतर

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सख़्तियों को ही जो सोपान बना लेते हैं।।
 
सख़्तियों को ही जो सोपान बना लेते हैं।।
  
                       
 
 
काश्मीर  करवा  रहा, यों  अपनी  पहचान
 
काश्मीर  करवा  रहा, यों  अपनी  पहचान
 
करते पत्थरबाज नित, सैनिक का अपमान।
 
करते पत्थरबाज नित, सैनिक का अपमान।

16:23, 14 जून 2018 के समय का अवतरण

जिन्दगानी को जो उन्वान बना लेते हैं
अपनी मुस्कान को पहचान बना लेते हैं।
कब हैं डरते वो आसमाँ में उठे अंधड़ से
सख़्तियों को ही जो सोपान बना लेते हैं।।

काश्मीर करवा रहा, यों अपनी पहचान
करते पत्थरबाज नित, सैनिक का अपमान।
पैलट गन मत मारिये, करते सदा पुकार
वो करते प्रतिकार तो, प्यारी लगती जान।।

खिला गुलमुहर झूम कर, टेसू ज्यों अंगार
अमलतास करने चला, धरती का श्रृंगार।
रवि अम्बर में तप रहा, जले तवा सी भूमि
तन मन झुलसाने लगी, ऐसी चली बयार।।

देश की आन, मान रखते हैं
दुश्मनों पर कमान रखते हैं।
इसकी इज्जत सदा बचाने को
हम हथेली पे जान रखते हैं।।

मिला श्याम दिल बावरा हो गया
हमे प्यार का आसरा हो गया।
बना कृष्ण यों मेरा जानो जिगर
कि तन मन मेरा साँवरा हो गया।।