भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ग़म को खुशियों की सौगातें / ज्योत्स्ना शर्मा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार = ज्योत्स्ना शर्मा |संग्रह = }} {{KKCatGhaz...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
<poem> | <poem> | ||
+ | दिल के इस तनहा कमरे में , | ||
+ | याद उतरती लम्हा-लम्हा । | ||
− | <poem> | + | शाम सुनहरी हुई मिलन की, |
+ | बात उतरती लम्हा-लम्हा । | ||
+ | |||
+ | ग़म को खुशियों की सौगातें , | ||
+ | साथ उतरती लम्हा-लम्हा । | ||
+ | |||
+ | जश्न जीत का चले मुसलसल , | ||
+ | मात उतरती लम्हा-लम्हा । | ||
+ | |||
+ | </poem> |
04:07, 6 जुलाई 2018 के समय का अवतरण
दिल के इस तनहा कमरे में ,
याद उतरती लम्हा-लम्हा ।
शाम सुनहरी हुई मिलन की,
बात उतरती लम्हा-लम्हा ।
ग़म को खुशियों की सौगातें ,
साथ उतरती लम्हा-लम्हा ।
जश्न जीत का चले मुसलसल ,
मात उतरती लम्हा-लम्हा ।