भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मर्दा बिन लुगाई सुन्नी, घर सुन्ना बिन बीर / गन्धर्व कवि प. नन्दलाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गन्धर्व कवि पं नन्दलाल |अनुवादक= |...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
पंक्ति 24: पंक्ति 24:
 
वासर सुन्ना हो बिन रवि, नगारि सुन्ना हो बिन पवि,  
 
वासर सुन्ना हो बिन रवि, नगारि सुन्ना हो बिन पवि,  
 
कवि बिना कविताई सुन्नी, समर बिना रणधीर,   
 
कवि बिना कविताई सुन्नी, समर बिना रणधीर,   
लजै ना सत पथ धी गरु गामिनी।।               
+
लजै ना सत पथ धी गुरु गामिनी।।               
  
 
कुन्दनलाल विपद सब मेटी, दिन्ही खोल ज्ञान की पेटी,  
 
कुन्दनलाल विपद सब मेटी, दिन्ही खोल ज्ञान की पेटी,  

10:48, 9 जुलाई 2018 का अवतरण

मर्दा बिन लुगाई सुन्नी, घर सुन्ना बिन बीर,
सजै ना चन्द्रमा, बिन यामिनी ।। टेक ।।

घोड़ी सुन्नी चाल बिना, सरवर सुन्ना झाल बिना,
ताल बिना मुर्गाई सुन्नी, जिमी सरिता बिन नीर,
तजै ना वारिद जल घन दामिनी।।

तेल बिना हो सुन्ना तिल, ज्ञान बिना सुन्ना हो दिल,
महफिल हो बिन भाई सुन्नी, शँवासा बिना शरीर,
रजै ना पति प्रेम बिन कामिनी।।

योग क्रिया सुन्नी योगी बिना, सुन्ने भोग सकल भोगी बिना,
रोगी बिना दवाई सुन्नी, जर बिन सुन्ना कीर,
बजै ना तार बिना स्वर स्वामिनी।।

वासर सुन्ना हो बिन रवि, नगारि सुन्ना हो बिन पवि,
कवि बिना कविताई सुन्नी, समर बिना रणधीर,
लजै ना सत पथ धी गुरु गामिनी।।

कुन्दनलाल विपद सब मेटी, दिन्ही खोल ज्ञान की पेटी,
बेटी बिन जँवाई सुन्नी, कमान बिन सुन्ना तीर,
भजै ना भय झाडे बिन जामिनी।।