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"प्रेम अँजुरी / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर
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मन में यह भ्रम | मन में यह भ्रम | ||
मंदिर- सा ही | मंदिर- सा ही | ||
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मेरे देवता | मेरे देवता | ||
प्रसाद में दोगे ही | प्रसाद में दोगे ही | ||
'''प्रेम-अँजुरी''' | '''प्रेम-अँजुरी''' | ||
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तुम सदैव | तुम सदैव | ||
सशंकित, क्रुद्ध ही | सशंकित, क्रुद्ध ही |
08:17, 14 जुलाई 2018 के समय का अवतरण
नित वन्दन
मैं करती रही हूँ
तेरा ही प्रिय
मंदिर की पूजा -सा
मेरा प्रेम है
दीपशिखा -सी जली
किया प्रकाश
तेरे घर- आँगन,
रही पालती
मन में यह भ्रम
मंदिर- सा ही
कभी न कभी तुम
मेरे देवता
प्रसाद में दोगे ही
प्रेम-अँजुरी
किन्तु यह क्या मिला !
तुम सदैव
सशंकित, क्रुद्ध ही
और रहते
उद्धत उपेक्षा को
नहीं जानती
तप जिससे होओ
तुम प्रसन्न
जबकि मैं तो प्रिय
हूँ प्रेम-तपस्विनी!