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"जिसके दुःख को छूकर देखा / शैलजा सक्सेना" के अवतरणों में अंतर
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+ | हिम्मत के कंधों पर चढ़कर | ||
+ | तूने पार किया जो-जो कुछ | ||
+ | विकट कँटीली दुख की झाड़ी | ||
+ | तूने काटी अपने दम से | ||
+ | सीता सा विश्वास ढूँढ़कर | ||
+ | लड़ने के फिर-फिर दम साधे | ||
+ | जीते या ना जीते फिर भी | ||
+ | मुझ को राम सरीखा लगता | ||
+ | अपना दुख….. | ||
+ | अजब कहानी उस दुनिया की | ||
+ | सब कीजेब फटी और खाली | ||
+ | सब के दिल में दुख के घेरे | ||
+ | दिन और रातें काली-काली | ||
+ | फिर भी समझ नहीं हम पाते | ||
+ | दूजे के दिल पर क्या बीतू | ||
+ | बेमतलब की बातें करते | ||
+ | उम्र गुज़र गई, कर्मावाली | ||
+ | झूठे सब उपमान पड़ गए | ||
+ | सब कुछ लफ़्फ़ाज़ी लगता | ||
+ | अपना दुख फिर दरिया लगता। | ||
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05:58, 13 अगस्त 2018 के समय का अवतरण
जिसके दुख को छू कर देखा
उसका दुख ही गीला लगता।
तेरा दुख है एक बड़ा समन्दर
अपना दुख एक दरिया लगता।
हिम्मत के कंधों पर चढ़कर
तूने पार किया जो-जो कुछ
विकट कँटीली दुख की झाड़ी
तूने काटी अपने दम से
सीता सा विश्वास ढूँढ़कर
लड़ने के फिर-फिर दम साधे
जीते या ना जीते फिर भी
मुझ को राम सरीखा लगता
अपना दुख…..
अजब कहानी उस दुनिया की
सब कीजेब फटी और खाली
सब के दिल में दुख के घेरे
दिन और रातें काली-काली
फिर भी समझ नहीं हम पाते
दूजे के दिल पर क्या बीतू
बेमतलब की बातें करते
उम्र गुज़र गई, कर्मावाली
झूठे सब उपमान पड़ गए
सब कुछ लफ़्फ़ाज़ी लगता
अपना दुख फिर दरिया लगता।