भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आपसे मिले (हाइकु) / कमलेश भट्ट 'कमल'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
  
 
1
 
1
प्रीति,  हाँ प्रीति 
 
दुनिया में सुख की
 
एक ही रीति ।
 
2
 
 
आप से मिले  
 
आप से मिले  
 
तो लगा क्या मिलना  
 
तो लगा क्या मिलना  
 
किसी और से !
 
किसी और से !
3
 
ढूँढ़ता रहा
 
खुद को दिन रात
 
ढूँढ़ न पाया !
 
4
 
छोटा कर दे
 
रातों की लम्बाई भी
 
गहरी नींद ।
 
5
 
छीन ही लिया
 
नदी का नदीपन
 
प्यासे बाँधों ने ।
 
6
 
रिश्तों से ज्यादा
 
तनाव बसते है
 
घरों में अब !
 
7
 
युग-युगों से
 
सोए पड़े पहाड़
 
जागेंगे कब ?
 
8
 
गाँवों से लाता
 
शुद्ध आक्सीजन भी
 
वश न चला ।
 
9
 
भीड़ तो बढ़ी
 
विरल हो चले हैं 
 
रिश्ते परंतु ।
 
10
 
रात होते ही
 
गोलबन्द हो गये
 
चाँद-सितारे ।
 
11
 
घिर गया है
 
विषैली लताओं से
 
जीवन- वृक्ष ।
 
12
 
बुझते हुए
 
पल भर को सही
 
लड़ी थी लौ भी ।
 
13
 
मैं नहीं हूँ मैं
 
तुम भी कहाँ तुम
 
सब मुखौटॆ ।
 
  
 
</poem>
 
</poem>

02:33, 21 अगस्त 2018 के समय का अवतरण


1
आप से मिले
तो लगा क्या मिलना
किसी और से !