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"बहुत दिनों में धूप / अनिल जनविजय" के अवतरणों में अंतर

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यह शरद की धूप कितनी कमनीय है
 
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(मस्क्वा, 2018)
 
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17:55, 5 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण

बहुत दिनों में धूप निकली
दिन आज का भरा-भरा है
पत्ते झर चुके पेड़ों के
पर मेरा मन हरा-हरा है
दसों दिशाएँ भरी हुई हैं सौरभ से
मौसम त्रिलोचन का ’नगई महरा’ है
यह शरद की धूप कितनी कमनीय है
चारों ओर जैसे स्वर्ण ही स्वर्ण फहरा है

(मस्क्वा, 2018)