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"कला का पहला क्षण / मनमोहन" के अवतरणों में अंतर

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मुमक़िन नहीं होता
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कि दिल ज़हर में डूबा रहे
 
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और आँखें बस कड़वी हो जाएँ
और आँखें, बस, कड़वी हो जाएँ
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20:32, 5 अक्टूबर 2018 के समय का अवतरण

कला का पहला क्षण

कई बार आप
अपनी कनपटी के दर्द में
अकेले छूट जाते हैं

और क़लम के बजाय
तकिये के नीचे या मेज़ की दराज़ में
दर्द की कोई गोली ढूँढ़ते हैं

बेशक जो दर्द सिर्फ़ आपका नहीं है
लेकिन आप उसे गुज़र न जाने दें
यह भी हमेशा मुमक़िन नहीं

कई बार एक उत्कट शब्द
जो कविता के लिए नहीं
किसी से कहने के लिए होता है
आपके तालू से चिपका होता है
और कोई नहीं होता आसपास

कई बार शब्द नहीं
कोई चेहरा याद आता है
या कोई पुरानी शाम

और आप कुछ देर
कहीं और चले जाते हैं रहने के लिए
भाई, हर बार रुपक ढूँढ़ना या गढ़ना
मुमक़िन नहीं होता
कई बार सिर्फ़ इतना हो पाता है
कि दिल ज़हर में डूबा रहे
और आँखें बस कड़वी हो जाएँ