भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ख़लीलुर्रहमान आज़मी की याद में / शहरयार" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 11: पंक्ति 11:
 
किस मंज़िल, किस मोड़ पर बिछड़ा
 
किस मंज़िल, किस मोड़ पर बिछड़ा
  
ओस में भीगी यह प्गडंडी
+
ओस में भीगी यह पगडंडी
  
 
आगे जाकर मुड़ जाती है
 
आगे जाकर मुड़ जाती है

01:42, 29 जुलाई 2008 का अवतरण

धूल में लिपटे चेहरे वाला

मेरा साया

किस मंज़िल, किस मोड़ पर बिछड़ा

ओस में भीगी यह पगडंडी

आगे जाकर मुड़ जाती है

कतबों की ख़ुशबू आती है

घर वापस जाने की ख़्वाहिश

दिल में पहले कब आती है

इस लम्हे की रंग-बिरंगी सब तस्वीरें

पहली बारिश में धुल जाएँ

मेरी आँखों में लम्बी रातें घुल जाएँ।