भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ममतामयी ! / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 46: | पंक्ति 46: | ||
स्वर्ग पा जाऊँ। | स्वर्ग पा जाऊँ। | ||
-०- | -०- | ||
− | |||
</poem> | </poem> |
07:37, 13 नवम्बर 2018 का अवतरण
पलकें चूमूँ
तुम्हें गले लगाऊँ
जीवन पाऊँ।
2
क्षितिज पार
केवल इंतज़ार
धरा- गगन।
3
महामिलन
सृष्टि झूमे खुशी से
मादक मन।
4
ममतामयी !
तुझसे रस पाया
जीना सिखाया।
5
तुम न होते
रस मर ही जाता
कौन लुभाता।
6
रस छलके
तेरे नयनों से जो
मुझे सींचता।
7
वाणी का जादू
बनके आलिंगन
मुझे है बाँधे।
8
अधर -प्यास
बनके मधुमास
मुझे टेरती।
9
हो जाऊँ लय
तुम में एक दिन
वही है मुक्ति।
10
कहीं न जाऊँ
छुप तेरे सीने में
स्वर्ग पा जाऊँ।
-०-