भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कंटक- पथ / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' }} {{KKCatDoha}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार= | + | |रचनाकार=कविता भट्ट |
}} | }} | ||
{{KKCatDoha}} | {{KKCatDoha}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | 1 | |
− | + | कोई भी अपना नहीं,ना ही जाने पीर। | |
− | + | ओ मन अब तू बावरे,काहे धरे न धीर।। | |
+ | 2 | ||
+ | ऐसे तुम रूठे पिया, ज्यों मावस में चाँद | ||
+ | आ जाओ इक बार तो, घोर रात को फाँद। | ||
+ | 3 | ||
+ | '''कंटक- पथ पर चल रही, तेरी यादें साथ।''' | ||
+ | '''कुछ भी जग कहता रहे, तू न छोड़ना हाथ। | ||
+ | ''' | ||
<poem> | <poem> |
17:07, 10 जनवरी 2019 के समय का अवतरण
1
कोई भी अपना नहीं,ना ही जाने पीर।
ओ मन अब तू बावरे,काहे धरे न धीर।।
2
ऐसे तुम रूठे पिया, ज्यों मावस में चाँद
आ जाओ इक बार तो, घोर रात को फाँद।
3
कंटक- पथ पर चल रही, तेरी यादें साथ।
कुछ भी जग कहता रहे, तू न छोड़ना हाथ।