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"अन्ततः कलम / अनुक्रमणिका / नहा कर नही लौटा है बुद्ध" के अवतरणों में अंतर

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यह जो पसीने की गन्ध
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कब तक जंग में लगी-सी पड़ी थी
हवा में आई तेरी
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चारों ओर देखती, डेस्क पर, बिस्तर पर
ऐ देश! बता किसकी है
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पड़ी रहती जेब में, फाइलों के बीच
यह जो फरवरी ऊँची गेहूँ की फसल
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तेरे खेतों में चमकती दिखी
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इसके बीजों का इतिहास क्या है
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वह जिस ज़मीं पर है वह किस की जान है
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इस ज़मीं पर किसके हैं बहते आँसू
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जो इस की नदियाँ हैं
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यह जो पसीने की गन्ध
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तेरी हवा में आई
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ऐ देश! बता किसकी है
+
  
हज़ारों बरस दौड़ते जानवरों ने इस माटी से खेला
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कई बार चलने को हुई
बता कि उनके सपने क्या थे
+
झिझकती रूक गई।
किस मौसम में ढूँढ़ते थे वे किन पागलों को
+
हमने देखा है पहाड़ों को जो तेरे हैं
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हमने देखा है भूखों के जुलूसों को पहाड़ बनते
+
बता कि जब जब लोग बौखला उठे
+
मार-काट बोली में नाचे जब उनके हाथ पैर
+
उनका खू़न इस माटी इस पानी में बह कर कितनी दूर गया है
+
कितनी माँएँ हैं बिलखती तेरी साँसों में
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किन बादलों में जमी है उनके बच्चों की महक
+
  
बता तेरी किस माटी किस आस्माँ किस हवा किस पानी को
+
अन्ततः क़लम
करूँ सलाम!
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चल पड़ी है
 +
पीले रंगों की ओर
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जिनकी वजह से वह रुकी पड़ी थी।
  
 
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12:01, 22 जनवरी 2019 के समय का अवतरण

कब तक जंग में लगी-सी पड़ी थी
चारों ओर देखती, डेस्क पर, बिस्तर पर
पड़ी रहती जेब में, फाइलों के बीच

कई बार चलने को हुई
झिझकती रूक गई।

अन्ततः क़लम
चल पड़ी है
पीले रंगों की ओर
जिनकी वजह से वह रुकी पड़ी थी।