भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ढूँढा है हर जगह पे कहीं पर नहीं मिला / हस्तीमल 'हस्ती'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हस्तीमल 'हस्ती' |संग्रह=प्यार का...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
पंक्ति 20: पंक्ति 20:
 
सारी चमक हमारे पसीने की है जनाब  
 
सारी चमक हमारे पसीने की है जनाब  
 
विरसे में हमको कोई भी ज़ेवर नहीं मिला  
 
विरसे में हमको कोई भी ज़ेवर नहीं मिला  
 +
 
घर से हमारी आँख-मिचौली रही सदा  
 
घर से हमारी आँख-मिचौली रही सदा  
 
आँगन नहीं मिला तो कभी दर नहीं मिला  
 
आँगन नहीं मिला तो कभी दर नहीं मिला  
 
</poem>
 
</poem>

10:21, 25 जनवरी 2019 का अवतरण

ढ़ूँढ़ा है हर जगह पे कहीं पर नहीं मिला
ग़म से तो गहरा कोई समंदर नहीं मिला

ये तजुर्बा हुआ है मुहब्बत की राह में
खोकर मिला जो हमको वो पाकर नहीं मिला

दहलीज अपनी छोड़ दी जिसने भी एक बार
दीवारो दर ही उसको मिले घर नहीं मिला

दूरी वही है अब भी करीबी के बावजूद
मिलना उसे जहाँ था वहाँ पर नहीं मिला

सारी चमक हमारे पसीने की है जनाब
विरसे में हमको कोई भी ज़ेवर नहीं मिला

घर से हमारी आँख-मिचौली रही सदा
आँगन नहीं मिला तो कभी दर नहीं मिला