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"बेटी / जीवनानंद दास / मीता दास" के अवतरणों में अंतर

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झट से हाथ पकड़ लेता हूँ मैं उसका : सिर्फ धुआँसा-सा कुछ
 
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सफ़ेद कपड़े की तरह क्यों दिखता उसका मुखड़ा !
 
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दर्द होता है बाबा? मैं तो कब की मर चुकी हूँ... आज भी याद करते हो तुम मुझे?’’
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दोनों हाथों को चुपके से हिलाती हौले-हौले
 
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नया जीवन पाकर वह हठात मेरे क़रीब आ खड़ी हुई मेरी मृत बेटी ।
 
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उसने कहा: ''मुझे चाहा था तुमने इसलिए इस छोटी बहन को यानी
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तुम्हारी छोटी बेटी को घास के नीचे रख आई हूँ
 
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इतने दिनों तक मैं भी थी वहाँ अन्धकार में
 
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सोई हुई थी मैं ‘‘ .... घबराकर रुक गई मेरी बेटी,
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मैंने कहा : ''जाओ दोबारा जाकर सो जाओ वहाँ...
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घबराकर रुक गई मेरी बेटी कहते-कहते ,
पर जाते हुए छोटी बहन को आवाज देकर दे जाओ मुझे !’’
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मैंने कहा जाओ दोबारा जाकर सो जाओ वहाँ...
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पर जाते हुए छोटी बहन को आवाज देकर दे जाओ मुझे !
  
 
दर्द से बर उठा उसका मन... जरा ठहरकर शान्त-सी...
 
दर्द से बर उठा उसका मन... जरा ठहरकर शान्त-सी...

02:16, 3 मार्च 2019 का अवतरण

मेरी छोटी सी बच्ची
सब ख़त्म हो गया बेटी
सोई हुई हो तुम भी बिस्तर के निकट
सोई रहती हो... उठती-बैठती हो... चिड़िया की ही तरह बातें करती हो
घुटनों के बल घूमती-फिरती हो, धरती-आसमान एक करती हो...

भूल-भूल जाता हूँ उसकी बातें... मेरी प्रथम कन्या सन्तान थी वह
मेघों के संग बह कर आई हो जैसे —

आकर कहती — बाबा तुम ठीक तो हो? अच्छे हो? ज़रा प्यार करो मुझे?
झट से हाथ पकड़ लेता हूँ मैं उसका : सिर्फ धुआँसा-सा कुछ
सफ़ेद कपड़े की तरह क्यों दिखता उसका मुखड़ा !
— दर्द होता है बाबा? मैं तो कब की मर चुकी हूँ... आज भी याद करते हो तुम मुझे?

दोनों हाथों को चुपके से हिलाती हौले-हौले
मेरी आँखों को सहलाती, मेरे चेहरे को सहलाती
मेरी मृत बेटी,
मैं भी उसके चेहरे पर अपने दोनों हाथ फेरता,
पर उसका चेहरा कहीं नहीं है और न आँखे और बाल ।
फिर भी मैं उसे ताकता हूँ... सिर्फ उसे ही... धरती पर
पर मैं नहीं चाहता कुछ भी न रक्त-माँस वाली, आँखों वाली और न ही बालों वाली
मेरी वो बेटी
मेरी प्रथम कन्या सन्तान... चिड़िया-सी... सफ़ेद चिड़िया....
उसी की चाह है मुझे;

जैसे उसने बूझ लिया हो सब....
नया जीवन पाकर वह हठात मेरे क़रीब आ खड़ी हुई मेरी मृत बेटी ।

उसने कहा — मुझे चाहा था तुमने इसलिए इस छोटी बहन को यानी
तुम्हारी छोटी बेटी को घास के नीचे रख आई हूँ
इतने दिनों तक मैं भी थी वहाँ अन्धकार में
सोई हुई थी मैं ....
घबराकर रुक गई मेरी बेटी कहते-कहते ,
मैंने कहा जाओ — दोबारा जाकर सो जाओ वहाँ...
पर जाते हुए छोटी बहन को आवाज देकर दे जाओ मुझे !

दर्द से बर उठा उसका मन... जरा ठहरकर शान्त-सी...
उसके पश्चात धुआँसा-सा। सब कुछ धीरे-धीरे छिटककर धुएँ में विलीन हो गया,
सफ़ेद चादर की तरह समझ हवा को आगोश में भर लिया ।

न जाने कब एक कौआ बोल उठा...
देखता हूँ कि मेरी छोटी बेटी घुटनों के बल चल रही है और खेल रही है
...और वहाँ कोई भी नहीं है ।।