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"ग़ज़ल / उमेश बहादुरपुरी" के अवतरणों में अंतर

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दुश्मन के हीं हम अप्पन दिलदार बनयबइ।
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नहइर में सब झूठा हमर पिया।
आब मिलके हमसब नउका बिहार बनयबइ।।
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हमरा ले तूँ अनूठा हमर पिया।।
दे रहलइ हें सूरज हमर घर पर दस्तक।
+
बाप-महतारी गोइठा ठोकबाबे।
हम अप्पन किस्मत के चमकदार बनयबइ।।
+
बाँधल ही हम ई खूँटा हमर पिया।। नइहर ....
आबऽ ....
+
बाप-महतारी भैंसी चरवाबे।
पुरुष हिअइ हमरा में पौरुष छलकऽ हे।
+
जिनगी बदल हे ठूँठा हमर पिया।। नइहर ....
हम तो ई जुआनी के दमदार बनयबइ।।
+
हमरा ले त तूँहीं सुंदर सजनमा।
आबऽ ....
+
बाकी काला-कलूटा हमर पिया।। नइहर ....
भाँति-भाँति के फूल खिलल हे ई बगिया में।
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गउना करा के तूँ हमरा ले जा।
सब फूलन के एगो हम तो हार बनयबइ।।
+
हम उठइबो तोर जूठा हमर पिया।। नइहर ....
आबऽ ....
+
हमरा तूँ अकवारी में भर लऽ।
छुआछूत के फेर में हम बड़ दिन रहलूँ।
+
हमरा से न´् रूठऽ हमार पिया।। नइहर .....
मानवता के हम अप्पन सिंगार बनयबइ।।
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आबऽ ....
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सूक्खल नदी में नाव भी हम चला सकऽ ही।
+
हम तो अप्पन जिनगी के रसदार बनयबइ।।
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आबऽ ....
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मेहनतकश इंसाँ इहाँ कहिओ न´् हारऽ हे।
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धरम-करम के हम तो अप्पन यार बनयबइ।।
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आबऽ ....
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हम इतिहाँस पढ़ऽ ही न´् इतिहाँस बनाबऽ ही।
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हम अप्पन सूबा के सदाबहार बनयबइ।।
+
आबऽ ....
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01:38, 11 मार्च 2019 का अवतरण

नहइर में सब झूठा हमर पिया।
हमरा ले तूँ अनूठा हमर पिया।।
बाप-महतारी गोइठा ठोकबाबे।
बाँधल ही हम ई खूँटा हमर पिया।। नइहर ....
बाप-महतारी भैंसी चरवाबे।
जिनगी बदल हे ठूँठा हमर पिया।। नइहर ....
हमरा ले त तूँहीं सुंदर सजनमा।
बाकी काला-कलूटा हमर पिया।। नइहर ....
गउना करा के तूँ हमरा ले जा।
हम उठइबो तोर जूठा हमर पिया।। नइहर ....
हमरा तूँ अकवारी में भर लऽ।
हमरा से न´् रूठऽ हमार पिया।। नइहर .....