"गंगा का अवतरण / योगेन्द्र दत्त शर्मा" के अवतरणों में अंतर
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चीर पहाड़ों की छाती को | चीर पहाड़ों की छाती को | ||
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गोमुख से ऋषिकेश पधारी | गोमुख से ऋषिकेश पधारी | ||
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देवभूमि के देव छोड़कर | देवभूमि के देव छोड़कर | ||
− | घुलती-मिलती | + | घुलती-मिलती इनसानों में |
इतराती चल रही बीच में | इतराती चल रही बीच में | ||
इधर घाट है, उधर घाट है ! | इधर घाट है, उधर घाट है ! | ||
− | + | सँकरी राह छोड़कर पीछे | |
अतुल-विपुल विस्तार ले रही | अतुल-विपुल विस्तार ले रही | ||
पर्वत पर सिमटी-सिकुड़ी थी | पर्वत पर सिमटी-सिकुड़ी थी | ||
अब व्यापक आकार ले रही | अब व्यापक आकार ले रही | ||
− | + | तटबन्धों को तोड़ रही है | |
कितना चौड़ा हुआ पाट है ! | कितना चौड़ा हुआ पाट है ! | ||
− | + | मन्दिर, भवन, सीढ़ियाँ, झूले | |
− | + | सन्त, महन्त, पुजारी, पण्डे | |
संन्यासी, श्रद्धालु भक्तजन | संन्यासी, श्रद्धालु भक्तजन | ||
− | सबके अपने-अपने | + | सबके अपने-अपने झण्डे |
आश्रमवासी, मठाधीश हैं | आश्रमवासी, मठाधीश हैं | ||
सबकी अपनी अलग हाट है ! | सबकी अपनी अलग हाट है ! | ||
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तीर्थकाम, निष्काम पर्यटक | तीर्थकाम, निष्काम पर्यटक | ||
भावुक जन, भोले अभ्यागत | भावुक जन, भोले अभ्यागत | ||
− | धरती पर उतरी | + | धरती पर उतरी गँगा का |
विह्वल मन से करते स्वागत | विह्वल मन से करते स्वागत | ||
वंदन, कीर्तन, भजन, आरती | वंदन, कीर्तन, भजन, आरती | ||
दृश्य भव्य, अद्भुत, विराट है ! | दृश्य भव्य, अद्भुत, विराट है ! | ||
− | साज-सिंगार किया | + | साज-सिंगार किया गँगा ने |
पहन सेतु की चपल मेखला | पहन सेतु की चपल मेखला | ||
बनी मत्स्यकन्या-सी अनुपम | बनी मत्स्यकन्या-सी अनुपम |
13:11, 12 जून 2019 के समय का अवतरण
उतर रही है स्वर्गधाम से
गँगा का क्या ठाठ-बाट है !
चीर पहाड़ों की छाती को
इठलाती, बलखाती आती
बढ़ी चली आ रही वेग से
सबल शिलाओं से टकराती
कहीं धरातल ऊबड़-खाबड़
कहीं सरल, सीधा-सपाट है !
गोमुख से ऋषिकेश पधारी
आ पहुँची है मैदानों में
देवभूमि के देव छोड़कर
घुलती-मिलती इनसानों में
इतराती चल रही बीच में
इधर घाट है, उधर घाट है !
सँकरी राह छोड़कर पीछे
अतुल-विपुल विस्तार ले रही
पर्वत पर सिमटी-सिकुड़ी थी
अब व्यापक आकार ले रही
तटबन्धों को तोड़ रही है
कितना चौड़ा हुआ पाट है !
मन्दिर, भवन, सीढ़ियाँ, झूले
सन्त, महन्त, पुजारी, पण्डे
संन्यासी, श्रद्धालु भक्तजन
सबके अपने-अपने झण्डे
आश्रमवासी, मठाधीश हैं
सबकी अपनी अलग हाट है !
तीर्थकाम, निष्काम पर्यटक
भावुक जन, भोले अभ्यागत
धरती पर उतरी गँगा का
विह्वल मन से करते स्वागत
वंदन, कीर्तन, भजन, आरती
दृश्य भव्य, अद्भुत, विराट है !
साज-सिंगार किया गँगा ने
पहन सेतु की चपल मेखला
बनी मत्स्यकन्या-सी अनुपम
शांत, सौम्य, निर्मला, उज्ज्वला
केशराशि है हरित वनस्पति
शैल-शिखर उन्नत ललाट है !
कलाकार-मन मुग्ध-मुदित है
गाये क्या, चारण न भाट है !